अचलेश्वर महादेव

अचलेश्वर महादेव के नाम से भारत में कई मंदिर है जिसमे से एक धौलपुर के अचलेश्वर महादेव के बारे में हम आपको बता चुके है जहाँ पर दिन में तीन बार रंग बदलने  वाला शिवलिंग है। आज हम आपको माउंट आबू के अचलेश्वर महादेव के बारे में बताएंगे जो की दुनिया का ऐसा इकलौत मंदिर है जहां पर शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।

राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यहाँ पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण के मुताबिक वाराणसी शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी ।अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्तिथ है।

मंदिर में प्रवेश करते ही पंच धातु की बनी नंदी की एक विशाल प्रतिमा है, जिसका वजन चार टन हैं। मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दृष्टिगोचर होता है, जिसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिन्हें स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यह देवाधिदेव शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है।  पारम्परिक मान्यता है की इसी अंगूठे ने पुरे माउंट आबू के पहाड़ को थाम रखा है जिस दिन अंगूठे का निशाँ गायब हो जाएगा, माउंट आबू का पहाड़ ख़त्म हो जाएगा।

पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई, तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई। एक बार दोबारा ऐसा ही हुआ। इसे देखते हुए बार-बार के हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्र्धन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्र्धन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया।

आश्रम में नंदी वद्र्धन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए। उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी वद्र्धन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ। वरदान प्राप्त कर नंदी वद्र्धन खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी वद्र्धन का नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत है।

इसके बाद भी वह अचल नहीं रह पा रहा था, तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया तभी यह अचलगढ़ कहलाया। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है।

Share with us : Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *