अर्जुन की प्रतिज्ञा

कुरुक्षेत्र में महाभारत का भीषण युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य चल रहा था । अर्जुनकी अनुपस्थितिमें कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की। किन्तु उसमें अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने सहजता से प्रवेश कर लिया; परन्तु उससे निकल नहीं पाया। अन्ततः उसे वीरगति प्राप्त हुई । उसकी मृत्यु के पश्चात, पाण्डवों के द्वेष से ग्रस्त कौरव सेना के जयद्रथ ने अभिमन्युके मस्तक पर लात मारी ।

अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन पुत्रशोक से अति व्याकुल हुआ । इस मृत्यु से उसे दुःख की अपेक्षा जयद्रथ के तुछ कार्य से अधिक क्रोध हुआ । अर्जुन ने तुरन्त प्रतिज्ञा की, ‘कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करूंगा । ऐसा नहीं कर पाया, तो अग्नि में समा जाऊंगा !’ यह समाचार सुनकर कौरव सेना और जयद्रथ अत्यन्त भयभीत हुए । जयद्रथ को बचानेके लिए कौरवों ने उसके चारों ओर महान योद्धओं का कवच खडा कर दिया । दोपहर बीत गया था, सूर्यास्त होने में अधिक समय शेष नहीं था और जयद्रथका अता-पता नहीं था ।

इधर श्रीकृष्ण को अपने भक्त अर्जुन की चिन्ता होने लगी । इसलिए उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से सूर्य को ही ढंक दिया । सबको लगा सूर्यास्त हो गया है । अब अर्जुनने, प्रतिज्ञाके अनुसार अग्नि में प्रवेश करने के लिए लकडियों की चिता बनाई और उसे आग भी लगा दी । इसलिए, कौरव गण अर्जुन को जलते हुए देखनेके लिए उस चिता के पास आकर खडे हो गए । कुछ समय पश्चात जयद्रथ भी वहां आ गया । जलती चितामें प्रवेश करनेसे पहले अर्जुन ने धनुष्य-बाण उठाया, अग्नि देव का नमस्कार किया और चिता में छलांग लगाने ही वाला था कि श्रीकृष्ण ने सूर्य पर से अपना सुदर्शन चक्र हटा लिया । इससे सर्वत्र सूर्य का प्रकाश फैल गया । यह देख कौरव सेना में भगदड मच गई । जयद्रथ तो पूर्णतः अवाक हो गया । इतने में श्रीकृष्ण ने अर्जुनसे कहा, ”अर्जुन, अब क्या देखते हो, धनुषपर बाण चढाओ ! वह देखो सूर्य और सामने जयद्रथ!” कृष्णके ये शब्द सभी दिशाओंमें गूंज उठे । अर्जुनने एक क्षणमें अपने बाणोंसे जयद्रथका सिर धडसे अलग कर दिया। और अपने पुत्र के साथ किये गए गलत व्यव्हार का बदला लिया और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

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