विक्रम और बेताल

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज्य  करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े

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राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी

जब राजा विक्रम, बेताल को लेने जाते है तो वह उन्हें हर बार एक कहानी सुनाता है और अंत में राजा से ऐसा प्रश्न कर

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नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी

एक समय वन में कोई गीदड़ अपनी इच्छा से नगर के पास घूमते घूमते नील के हौद में गिर गया। बाद में उसमें से निकल

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पक्षीराज की चतुराई

बहुत समय पहले एक राजा था चंद्रसेन। उसकी रानी कठोर स्वभाव की थी। राजा चंद्रसेन उसके आगे कुछ नहीं बोल पाता था। रानी राजा से

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गोनू झा की चतुराई

मिथिला नरेश क‍ी सभा में उनके बचपन का मित्र परदेश आया था। नरेश उन्हें अपने अतिथि कक्ष में ले गए। उन्होंने अपने मित्र की खूब

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बालक ध्रुव

राजा उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो भार्याएं थीं । राजा उत्तानपाद के सुनीतिसे ध्रुव तथा सुरुचिसे उत्तम नामक पुत्र हुए । यद्यपि सुनीति

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कर्ण की निष्ठा

एक राज पुत्र होते हुए भी कर्ण सूत पुत्र कहा गया। कर्ण एक महान दानवीर था। अपनें प्रण और वचन के लिए कर्ण अपनें प्राणों की

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भगवान श्री कृष्ण को देवी गांधारी का दिया हुआ शाप

कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त हो चुका था। अधर्म का साथ देने वाले गांधारी के निन्यानवे पुत्र, और उनका सौवा पुत्र जो युद्धिष्ठिर, के पक्ष से

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“ सम्राट युद्धिष्ठिर ” द्वारा अपनी माता “देवी कुंती” और समस्त नारी जाती को दिया हुआ शाप

दुर्योधन का आखिरी महान योद्धा अंग राज कर्ण मारा जा चुका था । देवी कुंती अपनी आँखों में आँसू लिए कुरुक्षेत्र रण में आ पहुँचती

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असुरोंके विनाश हेतु सर्वस्वका त्याग करनेवाले ऋषि दधीचि !

बालमित्रो, प्राचीन कालमें वृत्रासुर नामका एक दैत्य बडा ही उन्मत्त हो गया था । अति बलवान होनेके कारण देवताओं को उसे हराना कठिन हो गया ।

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संसारको प्रसन्न करना कठिन है !

कुछ भी करें, लोग आलोचना करते ही हैं;  इसलिए उस ओर ध्यान न देते हुए स्वयंको जो योग्य लगता है, वैसा आचरण करना ही हितदायक

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समर्पण

एक साधु द्वार-द्वार घूमकर भिक्षा मांग रहा था । वृद्ध तथा दुर्बल उस साधुको ठीकसे नहीं दिखाई देता था । वह एक मन्दिरके सामने खडा

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गुरुका कार्य है शिष्यको उसका वास्तविक स्वरूप दिखाना

बकरियोंके एक झुंडपर एक बाघिनने छलांग लगाई । वह बाघिन गर्भवती थी । कूदते ही वह प्रसूत हो गई तथा कुछ समय पश्‍चात उसकी मृत्यु

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पवन पुत्र केसरी नन्दन हनुमान को बाल्य काल में मिला हुआ शाप

हनुमान बाल्यकाल में काफी नटखट थे। वह हंसी-खेल में ऋषि-मुनियों को खूब सताते थे। एक बार तो उन्होने सूर्य को अपने मुह में समा लिया

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हार-जीत का फैसला !

बहुत समय पहले की बात है। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ मेँ निर्णायक थीँ- मंडन मिश्र

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सात परियां और मुर्ख शेखचिल्ली

शेख चिल्ली के किस्से मूर्खता और हंसी की बातों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। अगर कोश में ‘शेखचिल्ली’ शब्द का अर्थ देखें तो उसमें लिखा

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सलाह सभी से फैसला अपने मन से

कोई बंजारा बैलो पर मुल्तानी मिटटी लादकर राजधानी की तरफ जा रहा था । रास्ते में कई जगह उसकी बहुत सी मिटटी बिक गई ।

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धर्म का आचरण

काशी के राजा ब्रह्मादत्त के राज्य में धर्मपाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसमें नाम के मुताबिक ही गुण थे। यहां तक कि उसके घर

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