बहादुर बहनें

अनायशा और प्रांशी दोनों बहनें बहुत बहादुर, समझदार व पढ़ने में होशियार थीं।  उनकी मम्मी उनकी सिर्फ एक आदत से परेशान रहती थीं कि वे दोनों हमेशा खाली वक्त में जासूसी टीवी प्रोग्राम देखती रहती थीं। आज दोनों बहनें बहुत खुश थीं, क्योंकि आज उनका आखिरी एग्जाम था। रिजल्ट आने तक दोनों ने जमकर जासूसी टीवी प्रोग्राम्स देखने का प्लान बनाया  था।

एग्जाम खत्म होने के बाद प्रांशी ने अनायशा से कहा, ‘चलो, घर चलें। मैं पार्किंग से साइकिल निकाल कर लाती हूं, तुम मुझे स्कूल के बाहर गेट पर मिलो।’

‘दीदी, आप जाओ। मैं थोड़ी देर बाद अपनी फ्रेंड्स के साथ आ जाऊंगी। आप मम्मी को भी बता देना कि मुझे आने में थोड़ी देर हो जाएगी।’

‘ठीक है। जल्दी आ जाना। ज्यादा देर मत करना,  वरना मम्मी चिन्ता करेंगी।’  यह कहते हुए वह अपनी साइकिल से घर की ओर चली गई। शाम को अनायशा जब घर पहुंची तो मम्मी ने उससे पूछा, ‘अनायशा! आज इतनी देर कहां लग गई?’

‘मम्मी, आज एग्जाम का आखिरी दिन था न, इसलिए मैं और मेरी फ्रेंड्स गप्पे-शप्पें मार रहे थे। तभी मुझे देर हो गई। आपको दीदी ने बता दिया होगा।’

‘क्या? दीदी ने? पर प्रांशी तो अभी तक घर ही नहीं आई।’ मम्मी घबरा गईं और घबराहट में सवाल पर सवाल करती चली गईं। ‘तुम दोनों एक साथ क्यों नहीं आईं?’ ‘कब चली थी प्रांशी स्कूल से?’ ‘कहां रह गई?’ ‘हे भगवान मेरी बच्ची की रक्षा करना। आजकल बच्चों की चोरी की वारदातें भी बहुत हो रही हैं।’  मम्मी को इस तरह घबराते देख अनायशा बोली, ‘मम्मी प्लीज, आप ऐसे घबराओ मत। दीदी पहले भी तो कई बार स्कूल से लेट आ चुकी है। आप बैठो।’ इतना कह कर उसने मम्मी को पानी का गिलास लाकर दिया। ‘मम्मी, मैं दीदी की फ्रेंड्स के घर से उनका पता लगा कर आती हूं।’ अनायशा ने कहा तो मम्मी बोलीं, ‘हां, यह ठीक रहेगा। जल्दी से पता करके आ।’ अनायशा जैसे ही बाहर निकलने लगी, वैसे ही उसे दरवाजे पर साइकिल की घंटी की आवाज सुनाई दी। अनायशा उछल पड़ी और मां से बोली,‘मम्मी! दीदी आ गई।’ घर में घुसते ही प्रांशी ने अनायशा को चुप रहने का इशारा किया और मम्मी को देरी की वजह बताने लगी। ‘मम्मी, मेरी साइकिल एक पत्थर से टकरा गई थी, जिससे पहिये का रिम टेढ़ा हो गया था। उसे ठीक करवाने में बहुत समय लग गया। तभी मैं लेट हो गई।’ उसकी मम्मी ने सुना तो पूछा, ‘तुझे कहीं चोट नहीं आई न?’ ‘नहीं मम्मी, मैं ठीक हूं।’ मम्मी ने कहा,‘ दोनों बहनें जल्दी से खाना खा लो चल कर, फिर आराम करना।’

‘कमरे में आते ही अनायशा बोली, ‘दीदी ! आपने मुझे चुप रहने का इशारा क्यों किया था। क्या बात है? जल्दी बताओ न।’ प्रांशी बताने लगी, ‘जब मैं स्कूल से आ रही थी तो मेन रोड पर बहुत लंबा जाम लगा हुआ था। मैंने सोचा, क्यों न आज उस रास्ते से निकला जाए, जिस रास्ते से निकलने में सब डरते हैं। वह रास्ता तो हमेशा खाली ही रहता है।’ ‘तो क्या दीदी आप भुतहा हवेली वाले रास्ते से आई हैं? आपको डर नहीं लगा?’ अनायशा ने पूछा तो प्रांशी ने कहा, ‘तुम भूल गईं कि जासूसी सीरियल्स में क्या दिखाया जाता है? भूत-वूत कुछ नहीं होता। यह बस कुछ लोगों की फैलाई हुई अफवाह होती है। आज तो मुझे यकीन भी हो गया है कि उस भुतहा हवेली में भी ऐसा ही कोई चक्कर है।’

‘वह कैसे दीदी?’ अनायशा ने उत्सुकता से पूछा।

‘मैं जब उस रास्ते से आ रही थी तो मैंने पेड़ों की ओट में से देखा कि दो साधु अपने कंधों पर दो बेहोश बच्चों को उस हवेली के अन्दर ले जा रहे थे।  कल हम दोनों पूरी तैयारी के साथ चलेंगे और देखेंगे कि माजरा क्या है?’ दोनों बहनें अगले दिन हवेली में जाने के लिये जासूसों की तरह तैयारी करने लगीं। उन्होंने अपना टॉय वॉकी-टॉकी, गुलेल, मोबाइल फोन, पुलिस सायरन जैसी आवाज निकालने वाला खिलौना, तेल, लाल मिर्च, रस्सी और ऐसी ही कई उपयोगी चीजें अपने बैग में रख लीं।

अगले दिन सुबह ही दोनों बहनों ने मम्मी से मूवी देखने जाने की परमिशन ले ली। मूवी जाना तो असल में एक बहाना था। वास्तव में तो उन्हें भुतहा हवेली जाना था। हवेली पहुंच कर उन्होंने देखा कि उसके सारे दरवाजे  और खिड़कियां बन्द थे। तभी उनकी नजर खुले हुए रोशनदान पर पड़ी, जो काफी कम ऊंचाई पर बना हुआ था। उस रोशनदान के रास्ते वे आसानी से हवेली के अंदर दाखिल हो गईं। अंदर का नजारा देखकर उनका मुंह खुला का खुला रह गया। बाहर घास-फूस, पेड़ों, बेलों, जालों से भरी हुई गंदी हवेली अन्दर से चमचमा रही थी। यह देखते ही दोनों बहनों का माथा ठनका।

अनायशा बोली, ‘दीदी, हवेली बहुत बड़ी है। मैं दाएं जाती हूं, आप बाएं जाइए और अपने-अपने वॉकी-टॉकी साथ रखते हैं। हमें जो भी बात करनी होगी उसी से करेंगे।’ यह तय करके दोनों विपरीत दिशाओं में चली गईं। प्रांशी ने देखा कि एक कमरे में भगवा रंग के कुर्ते, नकली दाढ़ी-मूछें व मेकअप का सामान पड़ा था। वह समझ गई कि नकली साधु बनकर यहां कुछ लोग गलत काम करते हैं। दूसरी तरफ अनायशा ने एक बंद कमरे को जैसे ही खोला तो देखा कि अंदर कई बच्चे बेहोश पड़े थे। सभी के मुंह पर पट्टी लगी हुई थी। उसने फटाफट दीदी को वॉकी-टॉकी से सब बताया व अपने पास बुला लिया।

प्रांशी व अनायशा ने फटाफट बच्चों के मुंह से पट्टी हटाई और उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे। दो बच्चे होश में आए तो उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ लोग एक दिन पहले चॉकलेट खिलाकर बेहोश करके वहां लाए थे। अपहरणकर्ता दस बच्चों को अपने साथ कहीं ले गए थे और बाकी बच्चों को बेहोश कर दिया था। प्रांशी ने फोन करके तुरंत ही पुलिस को सारी बात बता दी। इंस्पेक्टर अंकल ने कहा वे पूरी तैयारी के साथ आधे घंटे में पहुंच जाएंगे।  अनायशा ने सीढ़ियों पर तेल गिरा दिया। वह और प्रांशी छुप कर खड़ी हो गईं। 15 मिनट बाद किसी के गिरने की आवाज आई।

दोनों बहनों ने ओट से देखा तो साधू के लिबास में दो लोग सीढ़ियों पर पड़े तेल पर फिसल कर गिरे हुए दिखाई दिए। उनमें से एक चिल्लाया, ‘जो भी अंदर आया है,  जिन्दा बचकर बाहर नहीं जाएगा।’ अनायशा ने दोनों को गुलेल से पत्थर मारने शुरू कर दिए और प्रांशी ने उनकी आंखों में मिर्ची डाल दी। वे ‘उइइइइइइ, मर गया’ कहते हुए भागे। उसी वक्त पुलिस भी आ गई और उन ढोंगी साधुओं को हथकड़ी लगा दी।

इंस्पेक्टर अंकल ने दोनों की तारीफ की और बताया कि उन्हें जल्द ही बहादुरी पुरस्कार दिया जाएगा। दोनों खुश थीं और सोच रही थीं कि आखिर जासूसी सीरियल देखने का कोई तो फायदा हुआ।

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