बिना विचारे जो करे

बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए कहावत पर आधारित एक कहानी

एक कंजूस महिला की यह आदत थी कि जैसे ही मुर्गे ने भोर में बांग लगाई- ‘कुंकडू-कूं और उसने अपनी नौकरानियों को उनके बिस्तरों से उठाना शुरू कर दिया।

नौकरानियां जवान मगर काहिल थी। उन्हें इस तरह अपनी मालकिन द्वारा गहरी नींद से उठाया जाना बिल्कुल पंसद नहीं था। वे चाहती थीं कि किसी प्रकार इस समस्या का हल निकल आए।

वह मुर्गा उनके लिए सबसे अधिक चिंता का विषय था। चाहे गरमी हो या बरसात, जाड़ा हो या बसन्त, बेरोकटोक सूर्य की निर्मल किरणें धरती पर पड़ते ही वह बांग देना शुरू कर देता था। उसकी बांग की आवाज सुनकर वह कंजूस महिला खुद तो उठ ही जाती, साथ ही गहरी नींद सोती हुई अपनी नौकरानियों को भी उठा देती।

”यह सब उस मुर्गे के कारण होता है। उसकी वजह से ही हमारी नींद में खलल पड़ती है। हमारी इस समस्या का हल यही है कि हम उस मुर्गे को ही जान से मार दें।“ उनमें से एक नौकरानी ने अपनी राय दी।

उसकी बात सुनकर सभी नौकरानियां काफी खुश हुई। उन्होंने मुर्गे को मारने की एक योजना भी बनाई। एक दिन मौका पाकर उन्होंने मुर्गे को पकड़ा और एकांत में ले जाकर उसकी गरदन ऐंठ कर उसे जान से मार दिया।

अब वे सभी यह सोचकर प्रसन्न थीं कि न तो मुर्गा भोर में बांग देगा और न ही मालकिन उठकर उन्हें जगाएगी। इस प्रकार उन्हें सुबह देर तक सोए रहने का अवसर प्राप्त हो जाएगा।

मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अब मालकिन के पास चूंकि सही समय जानने का कोई साधन नहीं था, इसलिए वह सूर्य निकलने के बहुत पहले या कभी कभी आधी रात को ही उठ बैठती और साथ ही अपनी नौकरानियों को भी उठा देती।

नौकरानियों ने अपनी समस्या के हल के लिए मुर्गे को जान से मारा था, मगर हाय रे भाग्य! इससे उनकी समस्या बजाय घटने के और बढ़ गई।

शिक्षा –  किसी कार्य को करने से पहले उसका अंजाम पहले सोचो।

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