वाल्मीकि रामायण की कुछ अनसुनी बातें

भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी

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रहस्यमयी और चमत्कारिक काल भैरव मंदिर

काल भैरव मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ पर भगवान काल भैरव साक्षात रूप में मदिरा पान करते है। जैसा की हम

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शिवरीनारायण और माता शबरी

रामायण में एक प्रसंग आता है  जब देवी सीता को ढूंढते हुए भगवान राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में भटकते हुए  माता शबरी के आश्रम में

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यहाँ पर है भगवान शिव का खंडित त्रिशूल 

जम्मू से 120 किलो मीटर दूर तथा समुद्र तल से 1225 मीटर की ऊंचाई पर, पटनीटॉप के पास सुध महादेव (शुद्ध महादेव) का मंदिर स्तिथ

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क्यों काटा था काल भैरव ने ब्रह्मा जी का पांचवा शीश

शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले काल भैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ। इनकी पूजा से घर में नकारत्मक

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यहां भगवान शिव से पहले की जाती है रावण की पूजा

झीलों की नगरी उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर झाडौल तहसील में आवारगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर स्तिथ है जो की कमलनाथ

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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के विषय में पौराणिक कथा है. कि जब भगवान श्री राम माता सीता को रावण की कैद से छुडाकर अयोध्या जा रहे थे़

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के संम्बन्ध में एक कथा प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार एक धर्म कर्म में विश्वास करने वाला व्यापारी था. भगवान शिव में उसकी

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काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. बात उस समय की है जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के

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त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार गौतम ऋषि ने यहां पर तप किया था. स्वयं पर लगे गौहत्या

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बैधनाथ ज्योतिर्लिंग

पौराणिक कथाओं के अनुसार बैधनाथ ज्योतिर्लिंग लंकापति रावण द्वारा यहां लायी गयी थी. इसकी एक बड़ी ही रोचक कथा है. रावण भगवान शंकर का परम

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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा महाभारत काल की है. महाभारत का युद्ध

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

एक बार विन्ध्यपर्वत ने भगवान शिव की कई माहों तक कठिन तपस्या की उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें साक्षात दर्शन

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबन्धित एक प्राचीन कथा प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार एक बार अवंतिका नाम के राज्य में राजा वृषभसेन नाम के

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

कथा के अनुसार भगवान शंकर के दोनों पुत्रों में आपस में इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि पहले किसका विवाह होगा. जब श्री

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घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

भारत के दक्षिण प्रदेश के देवगिरि पर्वत के निकट सुकर्मा नामक ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुदेश निवास करते थे. दोनों ही भगवान शिव के परम

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अर्धनारीश्वर का रहस्य

सृष्टि के प्रारंभ में जब ब्रह्माजी द्वारा रची गई मानसिक सृष्टि विस्तार न पा सकी, तब ब्रह्माजी को बहुत दुःख हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई

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भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र

भगवान विष्णु के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण

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श्रीराम और शंकरजी का युद्ध

बात उन दिनों कि है जब श्रीराम का अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था. श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न के नेतृत्व में असंख्य वीरों की सेना सारे

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अर्जुन को पाशुपत अस्त्र

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा तुम शंकरजी के पास जाओ। शंकरजी के पास पाशुपत नामक एक दिव्य सनातन अस्त्र है। जिससे उन्होंने पूर्वकाल में

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कण्णप्प की भक्ति

भील कुमार कण्णप्प वन में भटकते-भटकते एक मंदिर के समीप पहुंचा। मंदिर में भगवान शंकर की मूर्ति देख उसने सोचा- भगवान इस वन में अकेले

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ग्रहपत्यावतार

भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति (ग्रहपत्यावतार)। यह अवतार हमें संदेश देता है कि हम जो भी कार्य करें उसके केंद्र में भगवान को

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केतकी के पुष्प

एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का

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मारीच और सुबाहु का वध

राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के पास जा कर बोले, गुरुदेव! कृपा करके हमें यह बताइये कि राक्षस यज्ञ में विघ्न डालने के लिये किस

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चंद्रमा को शाप से मुक्ति

चंद्रमा की सुंदरता पर राजा दक्ष की सत्ताइस पुत्रियां मोहित हो गईं. वे सभी चंद्रमा से विवाह करना चाहती थीं. दक्ष ने समझाया सगी बहनों

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कहाँ छुपी हैं शक्तियां

एक बार देवताओं में चर्चा हो रहो थी, चर्चा का विषय था मनुष्य की हर मनोकामनाओं को पूरा करने वाली गुप्त चमत्कारी शक्तियों को कहाँ

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राम जन्म

मन्त्रीगणों तथा सेवकों ने महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया। महाराज दशरथ ने देश देशान्तर के मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों

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इन्द्रप्रस्थ की स्थापना

द्रौपदी स्वयंवर के पहले विदुर को छोड़ कर सभी पाण्ड्वो को मृत समझने लगे और इस कारण धृतराष्ट्र ने शकुनि के कहने पर दुर्योधन को

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पांडवों का स्वर्गगमन

श्रीकृष्णचन्द्र से मिलने के लिये तथा भविष्य का कार्यक्रम निश्चित करने के लिये अर्जुन द्वारिकापुरी गये थे। जब उन्हें गये कई महीने व्यतीत हो गये

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भीष्म और द्रोण वध

युद्ध के नौंवे दिन अर्जुन ने वीरवर भीष्म पर बाणों की बड़ी भारी वृष्टि की। इधर द्रुपद की प्रेरणा से शिखण्डी ने भी पानी बरसाने

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शांति दूत श्रीकृष्ण

धर्मराज युधिष्ठिर सात अक्षौहिणी सेना के स्वामी होकर कौरवों के साथ युद्ध करने को तैयार हुए। पहले भगवान् श्रीकृष्ण परम क्रोधी दुर्योधन के पास दूत

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सारथी श्रीकृष्ण

पाण्डवों का राज्य लौटाने का आग्रह और दोनो पक्षो की कृष्ण से सहायता की माँग राजा सुशर्मा तथा कौरवों को रणभूमि से भगा देने के

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दुर्योधन की रक्षा

गन्धमादन पर्वत स्थित कुबेर के महल में चार वर्ष व्यतीत करने के पश्चात् पाण्डवगण ने वहाँ से प्रस्थान किया और मार्ग में अनेक वनों में

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जयद्रथ की दुर्गती

एक बार पाँचों पाण्डव आवश्यक कार्यवश बाहर गये हुये थे। आश्रम में केवल द्रौपदी, उसकी एक दासी और पुरोहित धौम्य ही थे। उसी समय सिन्धु

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दिव्यास्त्रों की प्राप्ति

एक बार वीरवर अर्जुन उत्तराखंड के पर्वतों को पार करते हुये एक अपूर्व सुन्दर वन में जा पहुँचे। वहाँ के शान्त वातावरण में वे भगवान

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