पौराणिक दंत कथा अनुसार, एक बार शिवजी के निवास स्थान पर कुछ दुष्ट व्यक्ति प्रवेश कर जाते हैं। इस बात का बोध होते ही शिवजी
Read full story...भीमसेन का अभिमान
पांडु पुत्र भीम को अपनें बलशाली होने पर अत्यंत गर्व हो जाता है। वनवास काल के दौरान एक दिन वह वन की ओर विचरते हुए दूर
Read full story...भस्मासुर को शिव का वरदान
पूर्व काल में भस्मासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। उसको समस्त विश्व पर राज करना था। अपने इसी प्रयोजन को सिद्ध करने हेतु वह
Read full story...जनमेजय का “सर्प मेघ यज्ञ”
एक बार राजा परीक्षित किसी तपस्वी ऋषि का अपमान कर देते हैं। ऋषिवर क्रोधित हो उन्हें सर्प दंश से मृत्यु का श्राप दे देते हैं।
Read full story...दत्तात्रेय की प्रेरणा
कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने का अवसर आया , तो उन्होंने राज्यभार ग्रहण करने के प्रति उदासीनता व्यक्त
Read full story...अहंकार का अंत
प्राचीन समय की बात है चारो और जल ही जल था । केवल भगवान् विष्णु शेषनाग की शैया पर सोये हुए थे उसी समय मधु
Read full story...वानर राज बालि
बालि सुग्रीव का बड़ा भाई था। वह पिता और भाई का अत्यधिक प्रिय था। पिता की मृत्यु के बाद बालि ने राज्य सम्हाला। स्त्री के
Read full story...मारीच
एक बार अयोध्या में गाधि-पुत्र मुनिवर विश्वामित्र पधारे। उमका सुचारू आतिध्य कर दशरथ ने अपेक्षित आज्ञा जानने की उन्होंने एक व्रत की दीक्षा ली है।
Read full story...गृध्रराज जटायु
प्रजापति कश्यप जी की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरुड़ और अरुण। अरुण जी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के
Read full story...कुंभकर्ण
कुंभकर्ण रावण का भाई तथा विश्ववा का पुत्र था। कुंभकर्ण की ऊंचाई छह सौ धनुष तथा मोटाई सौ धनुष थी। उसके नेत्र गाड़ी के पहिये
Read full story...देवी अहिल्या
प्रातःकाल राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले। एक उपवन में उन्होंने एक निर्जन स्थान देखा।
Read full story...खर-दूषण का वध
शूर्पणखा ने रोते-रोते खर से कहा, ” राम और लक्ष्मण नामक दो राजकुमार, जो अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र हैं, इस वन में आये
Read full story...युवराज अंगद
युवराज अंगद बाली के पुत्र थे। बाली इनसे सर्वाधिक प्रेम करता था। ये बहुत बुद्धिमान, अपने पिता के समान बलशाली तथा भगवान श्री राम के
Read full story...धर्मात्मा राजा नहुष
प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा का पौत्र था। वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के कारण
Read full story...पतिव्रता नारी “सावित्री”
धर्मराज युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय ऋषि से कहा, “हे ऋषिश्रेष्ठ! मुझे अपने कष्टों की चिन्ता नहीं है, किन्तु इस द्रौपदी के कष्ट को देखकर अत्यन्त क्लेश
Read full story...देवराज इन्द्र और प्रह्लाद
प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रह्लाद की कथा आती है, जो इसका महत्त्व बताती है। राक्षसराज प्रह्लाद ने अपनी तपस्या एवं अच्छे कार्यों के बल पर
Read full story...नारद का घमण्ड
एक बार नारद जी को यह अभिमान हो गया कि उनसे बढ़कर इस पृथ्वी पर और कोई दूसरा विष्णु भगवान का भक्त नहीं है। उनका
Read full story...महात्मा रैक्व की कथा
जनश्रुति नामक वैदिक काल में एक राजा थे। वे बड़े उदार ह्रदय तथा दानी थे। सारे राज्य में जगह-जगह पर उन्होंने धर्मशालाएं बनावा रखी थीं
Read full story...मधु और कैटभ
प्राचीन समय की बात है। चारों ओर जल-ही-जल था, केवल भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर सोये हुए थे। उनके कान की मैल से मधु
Read full story...जड़भरत
जड़भरत के पिता उन्हें पंडित बनाना चाहते थे, किंतु बहुत प्रयत्न करने पर भी वे एक भी श्लोक याद न कर सके। उनके पिता ने
Read full story...दत्तात्रेय
एक बार वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्णव्यवस्था का लोप हो गया था। उस समय दत्तात्रेय ने इन सबका पुनरूद्धार किया था। हैहयराज अर्जुन
Read full story...जांबवती एवं सत्यभामा
सत्राजित सूर्य का भक्त था। उसे सूर्य ने स्यमंतक मणि प्रदान की थी। मणि अत्यंत चमकीली तथा प्रतिदिन आठ भार (तोल माप) स्वर्ण प्रदान करती
Read full story...शिव और अर्जुन
हिमालय पर्वतमाला में ‘इन्द्रकील’ बड़ा पावन और शांत स्थल था। ॠषि-मुनि वहां तपस्या किया करते थे। एक दिन पांडु पुत्र अर्जुन उस स्थल पर पहुंच
Read full story...परशुराम और सहस्त्रबाहु
हैहयवंश में उत्पन्न कार्तवीर्य अर्जुन बड़ा प्रतापी और शूरवीर था। उसने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान के रूप में उनसे हज़ार भुजाएं प्राप्त
Read full story...धन्वन्तरि वैध
देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के श्रान्त हो जाने पर क्षीरोदधि का मन्थन स्वयं क्षीर-सागरशायी कर रहे थे। हलाहल, गौ, ऐरावत, उच्चै:श्रवा अश्व, अप्सराएँ,
Read full story...हिरण्यकशिपु
धरा के उद्धार के समय भगवान ने वाराहरूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया। उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु बड़ा रुष्ट हुआ। उसने अजेय होने का
Read full story...कुबेर
महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भारद्वाज जी की कन्या इलविला का पाणि ग्रहण किया। उसी से कुबेर की उत्पत्ति हुई। भगवान ब्रह्मा ने
Read full story...महिषासुर का वध
पूर्वकाल की बात है। रम्भ दानव को महिषासुर नामक एक प्रबल पराक्रमी तथा अमित बलशाली पुत्र हुआ उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा जी
Read full story...त्रिशंकु
त्रिशंकु के मन में सशरीर स्वर्ग-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की कामना बलवती हुई तो वे वसिष्ठ के पास पहुचे। वसिष्ठ ने यह कार्य असंभव
Read full story...महर्षि भृगु
भगवान विष्णु के हृदय-देश में स्थित महर्षि भृगु का पद-चिह्न उपासकों में सदा के लिये श्रद्धास्पद हो गया। पौराणिक कथा है कि एक बार मुनियों
Read full story...समुद्र-मन्थन की कथा
एक दिन बलि की सभा में बैठे हुए नीति-निपुण देवराज इन्द्र ने बलि को सम्बोधित करके हँसते हुए कहा- ‘वीरवर ! हमारे हाथी-घोड़े आदि नाना
Read full story...नलकूबेर तथा मणिग्रीव
द्वापर युग में कुबेर जैसा शानवान कोई नहीं था। उसके दो पुत्र थे। एक का नाम नलकूबर था व दूसरे का मणिग्रीव। कुबेर के ये
Read full story...कच और संजीवनी
देव और दानवों में सदा युद्ध छिड़ा रहता था। दैत्य देवों से अधिक शक्तिशाली पड़ते थे, क्योंकि वे देवों के बड़े भाई थे, दैत्यों के
Read full story...अहोई व्रत कथा
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी
Read full story...महर्षि ऐतरेय
माण्डूकि नामक एक ऋषि थे उनकी पत्नी का नाम इतरा था। ये दोनों ही भगवान के भक्त थे तथा अत्यन्त पवित्र जीवन व्यतीत करते थे।
Read full story...अघासुर का वध
कंस के दैत्यों में अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था। कंस ने कृष्ण
Read full story...बकासुर का वध
श्रीकृष्ण, भैया दाऊ और अपने मित्रों के साथ नियमित रूप से वन जाने लगे। वे चारागाह जाते, गाय-बछड़ों को स्वतंत्र विचरण करने के लिए छोड़
Read full story...वत्सासुर का वध
वृन्दावन के चारों ओर प्रकृति का वैभव बिखरा हुआ था। तरह-तरह के फलों और फूलों के वृक्ष थे। स्थान-स्थान पर सुदंर कुंज थे। भांति-भांति के
Read full story...अनन्त चतुर्दशी
इस दिन भगवान विष्णु की कथा होती है। इस दिन भक्तगण लौकिक कार्यकलापों से मन को हटाकर ईश्वर भक्ति में अनुरक्त हो जाते हैं। इस
Read full story...मतस्य अवतार
कल्पांत के पूर्व एक बार ब्रह्मा जी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया था। उस दैत्य का नाम
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