एक गांव में सोहन और मोहन दो भाई अपने अपने परिवार के साथ रहते थे। सोहन धनवान था और मोहन ईमानदार व गरीब था। मोहन ने सोहन से कुछ रुपये उधार ले रखे थे जिसके लिए सोहन आये दिन उससे अपने पैसे मांगता था। दरसल सोहन की नियत मोहन के घर को हथिया लेने की थी। इस लिए एक दिन सोहन ने मोहन से लड़ना शुरू कर दिया की आज या तो पैसे दो या कचहरी चल कर अपने मकान की जमानत दो। मोहन ने अपने भाई को बहुत समझाया की वह उसका सारा पैसा बहुत जल्द वापस कर देगा किन्तु सोहन न माना। जिससे मोहन को मजबूरन कचहरी जाने की बात को मानना पड़ा किन्तु मोहन बोला भाई -” मेरे पास कपडे, जूते, पैसे, पगड़ी व जाने के लिए घोड़ा आदि भी नही है। अत में कैसे जा सकता हु। इस पर सोहन खुश होते हुए बोला -” बस इतनी सी बात ये सब में तुम्हे अभी देता हु, तब तो चलोगे। मोहन ने सोहन का हा बोला और चलने को तैयार हो गया। सोहन अपनी चालाकी पर बहुत खुश था। दोनों जब कचहरी पहुंचे जब वहां मोहन का नाम पुकारा गया तो मोहन ने जज से कहा – जज साहेब सोहन जो की मेरा भाई है मुझे यहाँ जबरन लाया है। वह मेरे घर की हर वस्तु को मेरे घर को अपना कहता है। और आये दिन मुझसे झगड़ा करता है। साहेब जी , कृपया मुझे इनसे कुछ सवाल पूछने की इजाजत दी जाये। जज साहेब ने इजाजत दी सोहन को बुलाया गया और मोहन ने उससे पहला सवाल पूछा -” अच्छा ये बताओ की में जो कपडे पहन कर यहाँ आया हु ये किसके है। सोहन बोला- “मेरे है। ” मोहन ने फिर से पूछा-” अच्छा ये बताओ की में घर से जिस घोड़े पर आया हू। वह किसका है। सोहन फिर से बोला -” मेरा है। ” मोहन ने अंतिम सवाल पूछा -” अच्छा ये बताओ की मेरे पेरो में ये जूते किसके है। सोहन खिसयाते हुए बोला -” ये सब जो कुछ भी तुमने पहन रखा है ये सब मेरा है। ” यह सुनकर कचहरी में बैठे सभी लोग जोर से हसने लगे। जज ने मुकदमे को बर्खास्त कर दिया। सभी को लगा की सोहन पागल हो गया है। इस तरह मोहन में उसके सडयंत्र को विफल कर दिया।
सीख – धूर्त से धूर्तता करना कोई गलत कार्य नही है।
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