एक बार एक महात्मा अपने शिष्यों के साथ कुम्भ के मेले का भ्रमण कर रहे थे तो वंहा विचरण करते हुए उन्होंने एक साधू को माला फेरते और साधना करते हुए देखा लेकिन क्या देखते है कि वो साधू बार बार आंखे खोल कर देख लेता कि लोगो ने कितना दान किया है | वो हँसे और आगे बढ़ गये तो थोड़ी दूर जाकर उन्होंने क्या देखा कि पंडित जी भगवत कह रहे थे लेकिन उनके चेहरे पर शब्दों के कोई भाव नहीं थे वो तो बस यंत्रवत बोले जा रहे थे और चेलों की जमात उनके पास बैठी थी इस पर महात्मा खिखिलाकर हस पड़े और आगे बढे ही थे कि क्या देखते है एक युवक बड़ी ही मेहनत और लगन से रोगियों की सेवा कर रहा है उनके घावों पर मरहम कर रहा है और उन्हें अपने दिल से बड़े ही प्रेमभाव से सांत्वना दे रहा है |
महात्मा ने उसे देखा तो उनकी आंखे भर आई और वो भावुक हो गये | जैसे ही महात्मा अपने शिष्यों के साथ अपने आश्रम पहुंचे तो शिष्यों ने गुरु से पहले दो जगह हंसने और बाकि एक रोने का कारण पुछा तो साधू कहने लगे बेटा पहले की दो जगहों पर तो मात्र आडम्बर ही था क्योंकि भगवान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही आदमी था जो आकुल दिखा वही जो लोगो की पूरे मनोयोग के साथ परिचर्या कर रहा था | उसकी सेवा भावना को देखकर मेरा मन द्रवित हो गया और मैं सोचने लगा कि जाने कब जनमानस धर्म के सच्चे स्वरुप को समझेगा | क्योंकि वही एक व्यक्ति है जो धर्म का महत्व और मर्म को समझता है |
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