काशी राज्य के राजा की तीन पुत्रियाँ अंबा, अंबिका, और अंबालिका का काशी में स्वयंवर हो रहा होता है। तभी वहाँ धनुष बाण लिए क्रोध में गंगा पुत्र भीष्म पहुँच आते हैं। उस सभा में कई महाराजा उपस्थित होते हैं जो भीष्म का मज़ाक उड़ाने लगते हैं कि उनकी ब्रह्मचर्य की प्रातिज्ञा का क्या हुआ? तभी भीष्म एक ही बाण से सारे राजा-महाराजाओं का मुकुट उतार लेते हैं और काशी की राजकुमारियों का हरण कर के हस्तिनापुर ले जाते हैं ताकि उनका विवाह विचित्रवीर्य से किया जा सके। भीष्म ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि सदियों से काशी की राजकुमारीयों का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमारों से होता आ रहा होता है। इसलिए काशी की राजकुमारी या इस बार भी हस्तिनापुर राज्य में ही ब्याही जानी चाहिए थी।
हस्तिनापुर आ कर पता चलता है की काशी राजकुमारी अंबा तो पहले ही शालव नरेश को मन ही मन अपना पति मान चुकी है और वह दोनों एक दुसरे से प्रेम करते हैं। फौरन ही भीष्म काशी राजकुमारी अंबा को शाल्व नरेश के पास भेज देते हैं पर शाल्व अंबा को अस्वीकार कर देते हैं।
अंबा अब अपमानित हो कर काशी वापस तो जा नहीं सकती थी। और शाल्व ने भी उसे ठुकरा दिया था। इसलिए वह वापस हस्तिनापुर आती है और हस्तिनापुर नरेश से कहती हैं कि मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार भीष्म है। उसे यह आदेश दिया जाये कि वह मुझसे विवाह करे।
पर अपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत के कारण भीष्म अंबा से विवाह करने से इन्कार कर देते हैं और तभी क्रोध की आग में जलती अंबा यह शाप देती है कि-
हे! कायर भीष्म… मैं अपने इस अपमान का बदला तुम्हारी जान ले कर लूँगी… चाहे मुझे जन्म पर जन्म ही क्यों ना लेने पड़े पर तुम्हारी मौत का कारण मै ही बनूँगी…
कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन से भीष्म का सामना हुआ तब अर्जुन के रथ पर शिखंडी नामक योद्धा खड़ा था और वह एक अर्धनारी था। अंबा ने ही शिखंडी के रूप में जन्म लिया था। उसे पता था की भीष्म कभी उस दिशा में बाण नहीं चलाएगा जिस दिशा में एक नारी खड़ी हो। भीष्म ने तुरंत शिखंडी के अंदर छुपी अंबा को पहचान लिया और तुरंत अपने शस्त्र त्याग दिये। निहत्थे भीष्म पर शिखंडी के पीछे छुपे अर्जुन ने बाणों की वर्षा कर दी। और भीष्म बाणों की शय्या पर लेट गए। युद्ध के अंत में महान योद्धा भीष्म मृत्यु को प्राप्त हुए। इस तरह अंबा ने अपना दिया हुआ शाप सच कर दिया और अपने अपमान का बदला लिया।
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