कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने का अवसर आया , तो उन्होंने राज्यभार ग्रहण करने के प्रति उदासीनता व्यक्त की । अर्जुन ने कहा की प्रजा का हर व्यक्ति अपनी आय का बारहवां भाग इसलिए राजा को देता है , ताकि राजा उसकी सुरक्षा करे । अनेक बार ऐसा भी होता है कि प्रजा को अपनी सुरक्षा के लिए और उपायो का प्रयोग भी करना पड़ता है । ऐसी स्थिति में राजा का पतन अवश्यभाती है । ऐसे राज्य को ग्रहण करने से क्या लाभ ? उनकी बात सुनकर मुनि गर्ग ने कहाँ , तुम्हे दत्तात्रेय का आश्रय लेना चाहिए । क्योकि स्वयं विष्णु ने उनके रूप में अवतार लिया है । गर्ग ने बताया कि एक बार देवता गण दैत्यों से हारकर बृहस्पति की शरण में गए । बृहस्पति ने उन्हें गर्ग के पास भेज दिया । देवताओ ने गर्ग मुनि के कहने पर दत्तात्रेय के आश्रम में शरण ले ली
जब दैत्य आश्रम पहुंचे तो वहां लक्ष्मी को आसीन देखकर उनके सौन्दर्य पर आसक्त्त हो गए । युद्ध की बात भूलकर वे लोग लक्ष्मी को पालकी में बैठाकर चल दिए । ऐसा करने के कारण उनका तेज नष्ट हो गया । दत्तात्रेय की प्रेरणा से देवताओ ने युद्ध कर उन्हें हरा दिया । दत्तात्रेय की पत्नी लक्ष्मी पुनः उनके पास पहुंच गई|
अर्जुन ने जब दत्तात्रेय के प्रभाव वाली कथा सुनी, तो उनके आश्रम गए । अपनी सेवा से उन्हें प्रसन्न कर लिया। उन्होंने प्रजा का न्यायपूर्वक पालन करने का वर मांगा । साथ ही ,उनसे यह वर भी प्राप्त किया कि जब वे कुमार्ग पर चलेगे , तो उन्हें सदैव राह दिखाने वाले उपदेशक मिल जाएंगे । इसके बाद अर्जुन का राज्यभिषेक हुआ । उन्होंने चिरकाल तक न्यायपूर्वक राज्य -कार्य संपन्न किया । वर्षो बाद जब उन्हें अपनी वीरता पर अहंकार हो गया , तो उनका पतन हो गया । इसके बाद उनका संहार परशुराम ने कर दिया ।