सीखा हुआ मिटाने के लिए भी शुल्क

एक युवक संगीत में निपुणता प्राप्त करना चाहता था । इसके लिए वह अपने क्षेत्र के सबसे महान संगीताचार्य के पास पंहुचा और बोला , आप संगीत के महान आचार्य है और संगीत में निपुणता प्राप्त करने में मेरी गहरी रूचि है ।
इसलिए आपसे निवेदन है कि मुझे संगीत की शिक्षा प्रदान करने की कृपा करे । संगीताचार्य ने कहा कि जब मुझसे संगीत सीखने की तुम्हारी इतनी उत्कट इच्छा है,तो आ जाओ,जरूर सीखा दूंगा | अब युवक ने आचार्य से पूछा कि इस कार्य के बदले मुझे क्या दक्षिणा देनी होगी । आचार्य ने कहा, कुछ ख़ास नही , मात्र सौ स्वर्ण मुद्राएं देनी होगी ।
सौ स्वर्ण मुद्राएं तो बहुत ज्यादा है , और संगीत का थोड़ा – बहुत ज्ञान भी है । फिर भी ठीक है , मै सौ स्वर्ण मुद्राएं आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा , युवक ने कहा । इस पर संगीताचार्य ने कहा , यदि तुम्हे पहले से संगीत का थोड़ा – बहुत ज्ञान है, तब तो तुम्हे दो सौ स्वर्ण मुद्राएं देनी होगी ।
युवक ने हैरानी से पूछा , आचार्य , यह बात तो गणितीय सिद्धांत के अनुकूल नहीं लगती और मेरी समझ से भी परे है । सिख़ाने में मेहनत कम लगने पर भी कीमत ज्यादा ?
आचार्य ने उत्तर दिया , काम कम कहां है ? पहले तुमने जो सीखा है , उसे मिटाना , विस्मृत करना होगा , तब फिर नए सिरे से तुम्हे सिखाना प्रारम्भ करना पड़ेगा । वस्तुतः कुछ नया , उपयोगी और महत्वपूर्ण सीखने के लिए सबसे पहले मस्तिष्क को खाली करना उसे निर्मल करना जरुरी है , अन्यथा नया ज्ञान उसमे समा नही पाएगा । सृजनात्मकता के विकास और आत्मज्ञान के लिए तो यह अत्यंत अनिवार्य है , क्योंकि पहले से भरे हुए पात्र में कुछ भी और डालना असंभव है | जो पहले से भरा हुआ है , उसमे नया कैसे आ पाएगा !

 

सौं.
सीताराम गुप्ता

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