महारानी दुर्गावती

यह एक पुराने समय की कहानी है जिसमे राजकुमारी दुर्गावती का विवाह किसी राजा दलपत सिंह से हो जाता है । दोनों ही परम वीर साहसी और बुद्दिमान थे इसलिए जोड़ी बड़ी सही थी एक दिन राजा ने रानी को पूरा राज्य के दौरे पर चलने के लिए विचार बनाया ताकि कभी अगर राजा अनुपस्थित हो तो रानी को राज्य के काम काम काज में कोई परेशानी नहीं आये । ऐसा सोच कर दोनों यात्रा के लिए निकल गये । साथ में दीवान भी था ।
एक दिन बड़ी तेज बारिश वाला मौसम था और कुहरा भी छाया हुआ था तो ऐसी स्थिति में नदी का बहाव भी बहुत तेज होता है बारिश के दिनों में और राजा और रानी को आगे बढ़ने के लिए नदी को पार करना था । राजा परेशान थे कि ऐसे में क्या किया जाये । आगे की यात्रा भी तो पूरी करनी है । दुर्गावती जिस हाथी पर बैठी थी उस पर उनकी सहेलियाँ और दासी भी थी और महावत का लड़का भी उसी हाथी पर बैठा हुआ था जबकि राजा और दीवान दुसरे हाथी पर बैठे थे ऐसे में उन लोगो ने बहुत कोशिश की कि पास पास रहे लेकिन फिर भी भाव के तेज होने की वजह से हाथी दूर दूर हो गये ।
दुर्गावती जिस हाथी पर बैठी थी वो अब पानी के बीचो बीच था जबकि इस दौरान बाकि सभी महावत नदी के पार हो गये थे और महावत ने हाथी को सँभालने की बहुत कोशिश की लेकिन एकाएक हाथी डगमगाया और उसे सँभालने में महावत ने जैसे ही थोडा जोर लगाया घबराकर महावत का बेटा पानी में जा गिरा जिसकी वजह से महावत भी सकपका गया कि क्या करे और क्या न करें । उसने अपनी पगड़ी खोली और अपने बेटे की और फेंककर उसे कहा कि इसकी मदद से ऊपर आने का प्रयास करो लेकिन लड़का उसकी पहुँच से दूर था इतने में रानी दुर्गावती ने तुरंत पानी में छलांग लगा दी और जब तक महावत का हाथी किनारे पर पहुंचा रानी भी उस बच्चे के साथ किनारे पर पहुँच गयी ।
महावत ने भावुक होते हुए रानी से कहा अपने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए मेरे बेटे की जान बचायी है और कहते हुए उसकी आंखे भर आई रानी दुर्गावती मुस्कुराकर रह गयी । सभी रानी की हिम्मत और साहस की प्रशंसा कर रहे थे ।

Share with us : Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail