अहंकार का अंत

प्राचीन समय की बात है चारो और जल ही जल था । केवल भगवान् विष्णु शेषनाग की शैया पर सोये हुए थे उसी समय मधु और कैटभ नाम के दो महापराक्रमी दानव उत्पन्न हुए। वे सोचने लगे की हमारी उत्पत्ति का कारण क्या है ? कैटभ ने कहा – भैया मधु ! इस जल से हमारी सत्ता को कायम रखने वाली भगवती महाशक्ति ही है । वे ही परम आराध्या शक्ति हमारी उत्त्पत्ति की कारण है ।’ मधु कैटभ ने हजार वर्ष तक तपस्या कर महाशक्ति को प्रसन्न कर लिया । उसने उनसे स्वेच्छा मरण का वर मांग लिया । देवी ने कहा – मेरी इच्छा से ही मौत तुम्हे मार सकेगी । देवता और दानव कोई भी तुम दोनों भाइयो को पराजित नही कर सकेगा |’

देवी के वर देने के बाद मधु और कैटभ को अभिमान हो गया । ब्रह्मा के साथ -साथ वे भी सभी देवताओ को परेशान करने लगे । वे दोनों भगवान् विष्णु से वर्षो तक युद्ध करने के बाबजूद परास्त नही हुए । विचार करने पर भगवान् को ज्ञात हुआ कि इन दोनों दैत्यों को भगवती की कृपा के बिना मारना असंभव है । इतने में ही उन्हें भगवती योगनिंद्रा के दर्शन हुए । भगवान् ने रहस्यपूर्ण शब्दो में भगवती की स्तुति की । भगवती ने प्रसन्न होकर कहा -‘ श्रीविष्णु , आप देवताओ के स्वामी है मैं इन दैत्यों को माया से मोहित कर दूंगी , तब आप इन्हें मार डाले ।’
भगवती का अभिप्राय समझकर भगवान् ने मधु -कैटभ से कहा कि तुम दोनों के युद्ध से मैं अति प्रसन्न हूं । इसलिए तुम मुझसे इच्छानुसार वर मांगो ।दैत्य भगवती की माया से मोहित हो चुके थे अहंकारवश विष्णु से ही वर मांगने को कहा । भगवान् बोले – ” यदि देना ही चाहते हो तो मेरे हाथो से मृत्यु स्वीकार करो । ‘ भगवती की कृपा से मोहित होकर मधु – कैटभ अपनी ही बातो में ठग गए । भगवान् विष्णु ने दैत्यों को सुदर्शन चक्र से पराजित कर दिया । इस प्रकार मधु और कैटभ का अंत हो गया ।

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