कर्त्तव्य की भावना

यह काफी पुरानी बात है। बिहार प्रांत के एक स्टेशन के निकट एक ट्रैकमैन अपना पॉइंट (वह उपकरण जिससे गाड़ियों का ट्रैक बदला जाता है) पकड़े खड़ा था। दोनों ओर से पूरी रफ़्तार पर दो गाड़ियां दौड़ी चली आ रही थीं। उस दिन रात का समय था और वह मौसम ख़राब होने का संकेत दे रहा था। वह जँहा खड़ा वहां पर रोशनी भी नहीं थी। ट्रैकमैन अपने काम के लिए मुस्तैदी से तैयार था। तभी उसे अपने पैरों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। उसने देखा तो दंग रह गया। एक बड़ा काला सांप उसके पैरों से लिपट रहा था। पॉइंट उसके हाथ में था।
डर के कारण उसकी चीख निकल गई। किंतु तभी उसने सोचा कि यदि वह पॉइंट हाथ से छोड़ देगा तो ऐसे में दोनों गाडि़यां परस्पर टकरा जाएंगी और बहुत लोग मारे जायेंगे। सांप के काटने से तो अकेले सिर्फ उसकी जान जाएगी लेकिन असंख्य लोगों की जान बच जाएगी। कम से कम मरते-मरते वह असंख्य लोगों की जान बचाने का पुण्य तो कर ही लेगा। यह सोचकर वह बिना हिले-डुले पॉइंट को पकड़े खड़ा रहा। कुछ ही देर में दोनों रेलगाडि़यों की घड़घड़ाहट तेज हुई और रेलगाडि़यां आराम से पॉइंट मैन के द्वारा पकड़े गए पॉइंट की सहायता से अलग-अलग ट्रैक पर निकल गईं। उधर सांप रेलगाडि़यों की घड़घड़ाहट सुनकर पॉइंटमैन का पैर छोड़कर चला गया। रेलगाडि़यों के जाने के बाद जब पॉइंटमैन का ध्यान अपने पैरों की ओर गया तो वह यह देखकर दंग रह गया कि वहां कुछ न था।
यह देखकर उसके मन से स्वत: ही निकला, ‘सच ही है, जो इंसान सच्चे मन से लोगों की मदद करते हैं उनकी सहायता ईश्वर स्वयं करते हैं।

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