वक़्त पंद्रह मिनट कीमत कुछ नहीं

बात करीब सौ साल पुरानी है , जब आईवी ली ने दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति चार्ल्स एम. स्क्वेब को कुछ ऐसे नुख्से बताये , जिससे उनकी पूरी कारोबारी दुनिया ही बदल गई । उधमियो की चिंता के केंद्र में कर्मचारियो की कार्यक्षमता अक्सर रहती है । उस दौर में अमेरिका के सबसे बड़े जहाज निर्माता एवं स्टील निर्माता कंपनी बेथलेहम स्टील कॉर्पोरेशन के निदेशक स्क्वेब की चिंता भी कुछ ऐसी ही थी । वह कारोबारी प्रतियोगिता में हमेसा आगे निकलने की होड़ में रहते थे । यह बात 1918 की है , जब स्क्वेब अपने कर्मचारियो की कार्यक्षमता बढ़ाने की जुगत में लगे थे । स्क्वेब की यह कोशिश ही उन्हें मशहूर प्रोडक्टविटी कंसल्टेंट एवं जनसंपर्ककर्मी आईवी ली के पास ले गयी थी । ली एक सफल उधमी थे और जनसंपर्क के क्षेत्र में अपने प्रयोगों के लिए उन्हें जाना जाता था । यही कारण था कि स्क्वेब ने उन्हें ऑफिस में बुलाकर कहा- ” मुझे वे तरीके बताओ , जिनसे ज्यादा काम किये जा सके ।” इसके लिए मुझे तुम्हारी हरेक कार्यकारी अधिकारी के साथ 15 मिनट चाहिए । आइवी ली ने जबाब दिया ।
स्क्वेब ने फिर पूछा – मुझे इसके लिए कितनी कीमत चुकानी होगी । ” फ़िलहाल कुछ नही ! तीन महीने बाद तुम्हे लगे कि मेरी सलाह का फायदा हुआ है , तो जो चाहे फीस दे देना । ” ली ने जबाब देते हुए कहा । कंपनी के कार्यकारी अधिकारियो से मिलकर आईवी ली ने उन्हें उच्च उत्पादन एवं बेहतर कार्यक्षमता पाने के लिए अपने सामान्य नुख्से बताए , जो आज भी उतने ही उपयोगी है| ली ने सुझाब दिया कि ‘हर दिन के अंत में ऐसे छह कामो की सूची बनाए, जिन्हें अगले दिन तुम्हे पूरा करना है । छह से ज्यादा काम नही होने चाहिए । फिर भी उन कार्यो के महत्व के आधार पर उनकी प्राथमिकता भी तय करे । अगले दिन जब भी ऑफिस पहुचे , अपने पहले कार्य पर ही ध्यान केंद्रित करे । तब तक दूसरे काम पर न लगे, जब तक वह पूरा न हो जाये । पूरी कार्यसूची पर इसी तरह अमल करे । दिन के अंत में फिर अगले दिन के लिए छह कार्यो की वैसी ही सूची बनाए । हर दिन उसी ढंग से काम करने की प्रक्रिया दोहराते रहे । रणनीति बेहद सरल थी । स्क्वेव और उनकी कार्यकारी टीम ने उस पर अमल किया । तीन महीने बाद स्क्वेव कंपनी के प्रदर्शन से हैरान थे । उन्होंने ली को अपने ऑफिस में बुलाया और 25 हजार डॉलर का चेक भेंट किया । 1918 में यह रकम 2015 के चार लाख डॉलर के बराबर थी । आईवी ली के यह नुख्से भले ही सरल लगे लेकिन आज भी ये उतने ही प्रासंगिक है ।

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