चार भाई

एक ब्राह्मण के चार पुत्र थे और उन चारो में आपस में बड़ा लगाव था । उन में से तीन तो शास्त्रों के प्रकांड ज्ञाता थे लेकिन चोथे ने कोई भी शास्त्र नहीं पढ़ा था लेकिन वह बड़ा बुद्धिमान था जबकि वे तीनो उस चौथे भाई को बेब्कुफ़ समझते थे। उन तीनो में जिन्होंने शास्त्रों का अध्ययन किया था उनमे बुद्धि का अभाव था एक बार चारों भाईयों ने परदेश जाकर अपने अपने ज्ञान से धन अर्जित करने का विचार किया और चारों चल पड़े| रस्ते में एक भाई कहने लगा हम तीनो ने तो अध्ययन किया है विद्या का लेकिन हमारा चौथा भाई जो है निरा अनपढ़ और बेवकूफ है तो हम अपनी अर्जित धन संपदा में से इसे कोई हिस्सा नहीं देंगे अच्छा है कि ये वापिस चला जाएँ क्योकि राजा महाराजा भी उन्ही का सम्मान करते है जिनके पास विद्या है दुसरे भाई ने भी पहले की बात का समर्थन किया लेकिन तीसरे भाई ने इसका विरोध किया और कहा कि हम बचपन से ही साथ रहे है इसलिए उचित नहीं है कि इसे यंहा छोड़ा जाये इसलिए हम अपनी अपनी कमाई का थोडा थोडा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे |

चौथा भाई भी उनके साथ ही रहा और इस तरह वो लोग मार्ग में आगे बढ़ते रहे रस्ते में एक जंगल आया तो एक जगह हड्डियों का ढेर था उसे देखकर उन्होंने अपनी अपनी विद्या की परीक्षा लेने का निश्चय किया | तो उनमे से एक ने अपनी विद्या के प्रयोग से हड्डियों के ढांचे को सही से बना दिया और दुसरे ने अपनी विद्या का उपयोग कर उसपर खाल और मांस ला दिया और रक्तसंचार की व्यवस्था भी कर दी | तीसरा भाई अपनी विद्या को प्रयोग कर उसने प्राण डालने ही वाला था कि चौथे भाई ने कहा कि रुको ये एक मरे हुए शेर की हड्डियाँ थी अगर तुम लोगो ने इसे जीवित कर दिया तो ये हमें मार देगा इस पर तीसरे भाई ने उसे डांटा और बोला कि मैं अपनी विद्या का सफल प्रयोग अवश्य करके देखूंगा तो इस पर चौथे भाई ने कहा थोडा रुको मुझे इस पेड़ पर चढ़ जाने दो इसके बाद चाहो तो तुम ये कर लेना तो उसके पेड़ पर चढ़ जाने के बाद तीसरे भाई ने अपनी विद्या के प्रयोग से शेर को पुन: जीवित कर दिया इस पर शेर जीवित होते ही तड़प उठा क्योंकि वो भूखा था तो तीनो को मार कर खा गया और गरजता हुआ जंगल में चला गया |

moral : बुद्धिमता हमेशा विद्या से श्रेष्ठ होती है |

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