एक जंगल में एक घोडा आजादी से रहता था। वह दिन भर घास खाता और पुरे दिन दौरता रहता था। उसे अपने ऊपर बहुत घमंड था। वह जंगल में सबका मजाक बनाता व दूसरो को अपने से काम समझता था। एक बार उस जंगल में शेर आगया घोड़े ने जब शेर को देखा तो वह दर गया और अपनी जान बचा कर भागा। तभी उसे रस्ते में एक व्यक्ति मिला जो शहर की और पैदल ही चला जा रहा था। घोडा उस व्यक्ति के पास आया और बोला- “अरे भाई मेरी जान बचाओ। जंगल में एक शेर है जो मुझे मार डालना चाहता है। व्यक्ति बोला- “अरे भाई चिंता मत करो, वह बाघ तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकता। बाघ से में तुम्हरी रछा करूँगा पर तुम्हे एक बात का ख्याल रखना होगा की में जैसा कहूँगा तुम्हे वैसा ही करना होगा।
घोडा तुरन्त बोला -” बताओ मुझे क्या करना होगा। ”
व्यक्ति बोला- “तुम्हे अपने मुह में लगाम व पीढ़ पर काठी लगवानी होगी.”
घोडा बोला -“तुम्हे जो करना हो करो पर मुझे उस बाघ से बचाओ ”
उस व्यक्ति ने तुरंत उसकी पीठ पर काठी बंधी और मुह में लगाम लगा दी। और उसे सीधे अस्तबल में ले आया और उसे बांधते हुए बोला – “अब तुम इस अस्तबल में एक दम सुरछित हो जब में बहार जाउगा तब तुम्हारी पीठ पर बैठूँगा और तुम्हारे साथ रहूँगा वह शेर तुम्हारा कुछ नही कर पायेगा। ”
इसके बाद व्यक्ति में अस्तबल का दरबाजा बंद किया और चला गया।
घोडा मन ही मन सोचने लगा में यह सुरछित तो पर अब में आजाद नही हू। मेने सुरछा तो प्राप्त कर ली पर अपनी आजादी गवां दी
परतंत्रता की कीमत पर सुरछा किस काम की।
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