प्रातःकाल राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले। एक उपवन में उन्होंने एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, “गुरुदेव! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं?”
इस पर विश्वामित्र जी ने कहा, “यह स्थान कभी महात्मा गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या बहुत ही सुंदर तथा पतिव्रता स्त्री थी। वह इतनी सुंदर थी कि चंद्रदेव व इद्रदेव भी उन पर आसक्त थे। एक दिन रात के समय चंद्र व इद्रदेव गौतम ऋषि के आश्रम में कामावेश होकर पहुच गए। जब चंद्र देव ने मुर्गे के रूप में दिन निकलने की बाग दी तो गौतम ऋषि बाग सुनकर स्नान करने के लिए आश्रम से निकल पड़े। जब इद्र ने गौतम ऋषि को जाते हुए देखा तो वह गौतम का वेश धारण कर आश्रम के अंदर जा पहुचा। काम के वश में होकर इद्रदेव आश्रम के अंदर तो पहुच गए लेकिन देवी अहिल्या के पतिव्रता धर्म के सामने ठहर नहीं पाए तथा आश्रम में प्रवेश करने के साथ ही उन्हें कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया। इद्रदेव जान चुके थे कि उनसे गलती हो चुकी है और वे तुरत ही आश्रम से बाहर निकल गए। जब वह आश्रम से निकल रहे थे तो उस समय ऋषि गौतम ने दोनों देवों को देख लिया। ऋषि ने जब दोनों को अपनी ध्यान शक्ति से पहचान लिया तो उन्होंने आश्रम के अंदर जाकर देवी अहिल्या से उनके आने के विषय में पूछा। देवी अहिल्या के इस बारे में अनभिज्ञता जताने पर वे क्रोधित हो गए और इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि ‘रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ पत्थर की मूर्ति बानी रहेगी। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी।’ यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने चले गये। देवी अहिल्या ने इसे पतिव्रत धर्म निभाते हुए स्वीकार कर लिया, जबकि उनका कोई भी दोष नहीं था। इस तरह देवी अहिल्या श्राप वश शिला रूप में परिवर्तित हुई। अतः हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।”
विश्वामित्र जी की आज्ञा पाकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्यारत अहिल्या की पत्थर की मूर्ति दिखाई दी उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब राम ने अहिल्या को स्पर्श किया तो वह एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरणस्पर्श किये। तत्पश्चात् उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।
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