गुरुका कार्य है शिष्यको उसका वास्तविक स्वरूप दिखाना

बकरियोंके एक झुंडपर एक बाघिनने छलांग लगाई । वह बाघिन गर्भवती थी । कूदते ही वह प्रसूत हो गई तथा कुछ समय पश्‍चात उसकी मृत्यु हो गई । उसका बच्चा बकरियोंके झुंडमें पलने-बढने लगा । बकरियोंके साथ वह भी चारा खाना सीख गया । बकरियां जिसप्रकार ‘बें…बें’ करती थी । उसीप्रकार वह भी करने लगा । धीरे-धीरे वह बच्चा बडा हो गया । एक दिन बकरियोंके झुंडपर एक बाघने आक्रमण किया । झुंडमें चारा खानेवाले बाघको देखकर वह दंग रह गया । उसने दौडकर चारा खानेवाले बाघको पकड लिया । वह ‘बें….बें’ चिल्लाने लगा । वनका बाघ उसे घसीटकर, उसपर चिल्लाते हुए उसे तालाबके पास ले गया । तब वह उसे बोला, ‘‘देखो, जरा पानीमें अपनी परछाई देखो । पानीमें तुम्हारा मुख दिख रहा है । ध्यानसे देखना, तुम एकदम मेरे जैसे दिख रहे हो और यह थोडासा मांस खाओ ।’’ ऐसा कहकर वनके बाघने उसे बलपूर्वक मांस खिलाया । प्रथमतः तो वह चारा खानेवाला बाघ मांस खानेके लिए सिद्ध नहीं हुआ । वह बार-बार ‘बें…बें’ चिल्ला रहा था । परंतु रक्तका स्वाद मुंहमें लगते ही वह आनंदसे मांस खाने लगा । तब वनके बाघने उसे कहा , ‘‘समझ गए न ? जो मैं हूं वही तुम हो । अब मेरे साथ वनमें चलो !’

तात्पर्य : गुरुकी कृपा होनेपर किसीका भय नहीं रहता । आप कौन हैं और आपका स्वरूप क्या है, यह सर्व आपको गुरु दिखाएंगे ।

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