नफरत और प्यार

हम में से हर किसी के पास अपनी जिन्दगी है लेकिन फिर भी कुछ लोग होते है जो असल मायने में इसे जीते है या यूँ कहे एक संजीदा जिन्दगी जो दूसरों के लिए भी खुशियों के मायने बने ऐसी जिन्दगी जी पाना बहुत मुश्किल होता है क्योकि हम चीजों पर लगातार बराबर ध्यान नही देते है जबकि ये एक सत्य है कि जितना हम दूसरो के लिए बेहतर बन पाते है उतना ही हम अपने लिए भी बेहतर होते है क्योकि जिन्दगी में हम उतना ही पाते है जितना किसी दूसरे को देने में हम समर्थ होते है | इसे आप इस कहानी के जरिये समझ सकते है |

”एक दिन एक माँ अपने बचे को किसी गलत कार्य करने पर डाट देती है। बच्चा अपनी माँ से नाराज हो कर घर से बाहर चला जाता है घर से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर जाकर वह जोर से चिल्ला कर बार बार कहता है कि ” मैं तुमसे नफरत करता हूँ ” तो थोड़ी ही देर बाद उसे अपनी ही प्रतिध्वनी सुनाई देती है तो वो बच्चा जिसे नहीं पता कि ये आवाज क्यों आती है उसे लगता है कि उस तरफ भी कोई है जो उस से यही कह रहा है तो वो डर जाता है वापिस अपनी माँ के पास आकर पूरी बात बताता है तो उसकी माँ समझ जाती है और बच्चे को वापिस उसी पहाड़ी पर लेजाकर कहती है अब तुम ये कहो कि ” मैं तुमसे प्यार करता हूँ ” तो वो फिर वही आवाज गूंजी तो उसकी माँ ने कहा कि देखो तुमने जब ये कहा कि ” मैं तुमसे नफरत करता हूँ” तो सामने से भी तुम्हे यही सुनने को मिला लेकिन जब तुमने अपनी नफरत को प्यार में बदल दिया तो सामने वाले का नजरिया भी तुम्हारे लिए बदल गया| और वह भी आपको प्यार करने लगा। माँ ने बच्चे को समझाया जीवन भी इसी तरह है अगर आप दुसरो से नफरत करोगे तो लोग भी आप से नफरत करेंगे माँ के संझाने से बच्चे को एक बड़ी सीख इस घटना से मिली |

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