एक आश्रम में राम और श्याम दो शिष्य थे । वे हमेशा एक दूसरे को नीचा दिखाने मैं लगे रहते तो एक दिन गुरु ने उन्हें बुलाया और एक कथा सुनाई। एक बार जंगल में एक भैंस और घोड़े में लड़ाई हो गयी । भैंस ने सींग मार मार कर घोड़े को अधमरा कर दिया और घोड़े ने जब देखा कि वो भैंस से जीत नहीं सकता तो वो वंहा से भागा । भागते भागते घोडा मनुष्य के पास पहुंचा और उस से अपनी लिए सहायता की प्रार्थना की । मनुष्य ने कहा भैंस के बड़े बड़े सींग है और वह अधिक बलवान भी है मैं उस से कैसे जीत पाउँगा तो घोड़े ने कहा तुम एक बड़ा डंडा लेलो और मेरी पीठ पर सवार हो जाओ मैं तेज तेज दौड़ता रहूंगा और तुम उसे मार मार कर अधमरी कर देना और फिर रस्सी बांध लेना । मनुष्य ने कहा मैं उसे बांधकर भला क्या करूँगा तो घोड़े ने बताया की भैंस मीठा दूध देती है तुम उसे पी लिया करना । मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली । बेचारी भैंस जब पिटते पिटते गिर पड़ी तो मनुष्य ने उसे बांध लिया और घोड़े ने काम समाप्त होने पर मनुष्य से कहा कि मुझे अब छोड़ दो मैं चरने जाऊंगा तो मनुष्य हंसने लगा कि मैं तुमको भी बांध लेता हूँ भैंस का मैं दूध पिया करूंगा और तुमको मैं घूमने जाऊंगा तब इस्तेमाल किया करूँगा उसके बाद तो घोडा बहुत पछताया ।
गुरु ने कथा समाप्त करते हुए बोला कि जिस तरह तुम आपस में लड़ते हो उसी तरह से रहोगे तो कोई तीसरा तुम्हारा फायदा उठा लेगा और घोड़े व भैंस के साथ जो हुआ वही तुम्हारे साथ होगा जैसे घोड़े ने भैंस के साथ किया वैसा तुम्हारे साथ भी होगा इसलिए एकता में बल है |