ब्रह्मवन में एक कर्तिल नामक हाथी था। जो बड़ा ही ताकतवर, उदंडी और मंदबुद्धि था। वह अपने सामान किसी को नही समझता था। जंगल के जानवर उससे बहुत परेशान थे। एक दिन पुरे जंगल के जानवरो ने सभा कर के उसे जंगल से भगा देने के लिए परामर्श लिया। एक बुद्धिमान गीदड़ ने सोचा,””यदि यह किसी तरह से मारा जाए तो उसकी देह से हमारा चार महीने का भोजन होगा।” उस सभा में से उस बुद्धिमान गीदड़ ने इस बात की प्रतिज्ञा की की मैं इसे बुद्धि के बल से मार दूँगा। फिर उस धूर्त ने कर्तिल हाथी के पास जा कर साष्टांग प्रणाम करके कहा — महाराज, कृपादृष्टि कीजिये। हाथी बोला — तू कौन है, सब वन के रहने वाले पशुओं ने पंचायत करके आपके पास भेजा है, कि बिना राजा के यहाँ रहना योग्य नहीं है, इसलिए इस वन के राज्य पर राजा के सब गुणों से शोभायमान होने के कारण आपको ही राजतिलक करने का निश्चय किया है।
जो लोकाचार में निपुण हो तथा प्रतापी, धर्मशील और नीति में कुशल हो वह पृथ्वी पर राजा होने के योग्य होता है।
इस लिए हे राजन। लग्न की घड़ी टल जाए, आप शीघ्र पधारिये। यह कहकर वह उसे अपने साथ ले चला। और कर्तिल हाथी भी राजा बनने के लोभ में फँस गया वह गीदड़ उसे अपने साथ एक तालाब पर ले गया और उसे राजतिलक से पूर्व शाही स्नान करने को कहा। वह तालाब एक कुवे के सामान था। जिसमे उतारकर वापस निकलना एक हठी के लिए सम्भव नही था। गीदड़ों के पीछे दौड़ता हुआ वह गहरी कीचड़ में फँस गया। फिर उस हाथी ने कहा — “”मित्र गीदड़, अब क्या करना चाहिए ? कीचड़ में गिर कर मैं मर रहा हूँ। लौट कर देखो। गीदड़ ने हँस कर कहा — “” महाराज, में तो अपनी पूँछ का सहारा आप को पकड़ा सकता हु पर में इतना छोटा हू की आपके काम नही आसकता। आप ने मेरी बात पर विश्वास कर अपनी मंदबुद्धि होने का प्रमाद दीया जिसके कारड तुम्हे ऐसा दुख हुआ है।
जब बुरे संगत से बचोगे तब जानो जीओगे, और जो दुष्टों की संगत में पड़ोगे तो मरोगे।
फिर वही कीचड़ में फँसे हुए हाथी को गीदड़ों ने मार कर खा लिया।
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