श्रीकृष्ण, भैया दाऊ और अपने मित्रों के साथ नियमित रूप से वन जाने लगे। वे चारागाह जाते, गाय-बछड़ों को स्वतंत्र विचरण करने के लिए छोड़ देते और स्वयं अपने संगी-साथियों के साथ भांति-भांति की क्रीड़ा करते; कभी वे गायों और बछड़ों को चराते समय बांसुरी की सुन्दर धुन बजाते। संपूर्ण गोधन कान्हा की बांसुरी के स्वर को पहचानता था। चरते-चरते जो गौवें और बछड़े दूर निकल जाते थे, वे भी कान्हा की बांसुरी की ध्वनि सुन वापस लौट आते। वे सामान्य संसारी बालकों की भांति बाल-लीला करते, स्वयं आनन्दित होते और अन्यों को भी आनन्द बांटते।
वत्सासुर के वध के पश्चात कंस को घोर आश्चर्य हुआ। एक पांच वर्ष का बालक वत्सासुर का वध कैसे कर सकता है? वह शंकित हो उठा। उसकी रातों की नींद उड़ गई। उसने अपने अन्य मित्र बकासुर को याद किया और अपनी चिन्ता उसके सामने रखी। स्वामी भक्त बकासुर ने श्रीकृष्ण को मारने की प्रतिज्ञा की और चल पड़ा वृन्दावन की ओर। यमुना के किनारे उसने अपना ठौर बनाया। यह वही स्थान था जहां समस्त ग्वाल-बाल गायों और बछड़ों के साथ प्यास बुझाते थे। कान्हा के मित्रों ने घाट पर घात लगाए एक विशालकाय पक्षी को देखा। ऐसा विशालकाय पक्षी किसी ने पहले कभी नहीं देखा था। उसका शरीर पर्वत के समान था और उसकी चोटी वज्र के समान थी। वह मछली खाने के बदले किसी दूसरे शिकार को ढूंढ़ रहा था। शीघ्र ही कान्हा उसके दृष्टिपथ में आ गए। वह सहसा उनके पास आया और पलक झपकते अपने विशाल चोंच से उनपर हमला बोल दिया। जबतक कोई कुछ समझता, उसने श्रीकृष्ण को निगल लिया। बलराम की आँखें फटी रह गईं। वे शोक से विह्वल हो गिर पड़े। अन्य ग्वाल-बाल निष्प्राण-से हो गए। बकासुर जब श्रीकृष्ण को निगल रहा था, तो उसके कंठ में तीव्र जलन होने लगी। जिसमें कोटि-कोटि सूर्य समाविष्ट हो, उसे कौन निगल सकता है। जब जलन असह्य हो गया और प्राण पर बन आई, तो बकासुर ने श्रीकृष्ण को उगल दिया और अपनी चोंच में पकड़ आकाश में उछाल दिया। पुनः अपनी चोंच में भींचकर मारने का उपक्रम किया। श्रीकृष्ण ने समय न गंवाते हुए बकासुर की चोंच अपने दोनों हाथों में पकड़ ली। उन्होंने बकासुर की चोंच को दो भागों में चीर डाला। असुर देखते ही देखते निष्प्राण हो गया। ग्वाल-बालों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था, परन्तु श्रीकृष्ण को सबने मुस्कुराते हुए अपनी ओर आते देख उन्हें विश्वास करना पड़ा। एक बड़ा संकट टल गया था। सभी आँखों में आनन्द के आंसू लिये कान्हा के गले मिले। बलराम तो इतने प्रसन्न हुए जैसे उन्हें उनका जीवनाधार प्राप्त हो गया हो। शाम हो चली थी। सबने अपने बछड़े एकत्र किए और घर की ओर प्रस्थान किया। आकाश से निरन्तर पुष्प की वर्षा हो रही थी वृन्दावन वासियों से श्रीकृष्ण के इस अद्भुत कृत्य को आश्चर्य एवं भक्ति से सुना। सभी उनसे अथाह प्रेम करते थे। उनकी महिमा तथा उनके विजय-कृत्यों को सुनकर सभी उनके प्रति अधिक वत्सल हो उठे।