वृन्दावन के चारों ओर प्रकृति का वैभव बिखरा हुआ था। तरह-तरह के फलों और फूलों के वृक्ष थे। स्थान-स्थान पर सुदंर कुंज थे। भांति-भांति के पक्षी अपने मधुर कंठ स्वरों से वातावरण को गुंजित कर रहे थे। एक ओर गोवर्धन पर्वत था और दूसरी ओर यमुना कल-कल करती बह रह थी। श्रीकृष्ण प्रतिदिन प्रातः ग्वाल-बालों के साथ गायों को चराते और आपस में तरह-तरह के खेल खेला करते थे। पूरे दिन वन में ही रहते थे। गायों को चराते और आपस में तरह-तरह के खेल खेला करते थे। सन्ध्या होने पर गायों के साथ पुनः घर लौटते थे। दिन-भर का सूनापन उनके आने पर समाप्त हो जाता था और बस्ती में आनंद का सागर उमड़ पड़ता था।
कंस मथुरा के सुरक्षित राजमहल में रहते हुए भी भयभीत रहता था। उसे अपनी शक्ति पर बड़ा अभिमान था। परन्तु चौबीस घंटों में ऐसा कोई घंटा नहीं होता, जिसमें उसे अपने प्राणों का भय सताता न हो। उसे बड़े-बड़े योद्धाओं, सैनिकों और सेनानायकों से अधिक डर मथुरा के बालकों से लगता था। उसके गुप्तचर प्रत्येक स्थान में फैले थे। वृन्दावन के विलक्षण बालक श्रीकृष्ण की गतिविधियां भी उसे ज्ञात होती रहती थीं। उसने कान्हा को मारने के लिए कई यत्न किए लेकिन सब असफल ही रहे। उसने वृन्दावन में श्रीकृष्ण-वध के लिए अपने मित्र वत्सासुर को नियुक्त किया। कंस के चरणों में अपना प्रणाम निवेदित कर वत्सासुर वृन्दावन पहुंचा। यमुना के तट पर अपने मित्रों के साथ खेलते हुए श्रीकृष्ण को देख वह अभिभूत हो गया। कुछ देर तक दूर खड़ा हो वह उस दिव्य बालक को देखता ही रहा, फिर उसे अपने प्रयोजन की याद आई। उसने बछड़े का रूप धारण किया और अन्य बछड़ों में मिल गया। उसे पता नहीं चला कि कान्हा ने उसे देख लिया था। उन्होंने दाऊ को असुर के आने की सूचना दी। फिर क्या था? दोनों भ्राताओं ने चुपके से उसका पीछा किया और वत्सासुर को पकड़ ही लिया। श्रीकृष्ण ने वत्सासुर की पिछली टांगें और पूंछ पकड़ ली और बलपूर्वक घूमाकर एक वृक्ष पर दे मारा। असुर के प्राण निकल गए। वह पेड़ की चोटी से भूमि पर आ गिरा। कान्हा के सभी संगी-साथियों ने यह दृश्य देखा। उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। सभी ग्वाल-बाल उस भयानक राक्षस को देखकर विस्मित हो गए थे। वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा करने लगे और ‘जय कन्हैया’ के नारे लगाने लगे। सन्ध्या समय जब वह लौटकर घर गए, तो उन्होंने पूरी बस्ती में भी इस घटना को फैला दिया। गोपों और गोपियों ने जहां श्रीकृष्ण के शौर्य की प्रशंसा की, वहीं उन्होंने वत्सासुर से बच जाने की प्रसन्नता में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। आकाश से देवताओं ने पुष्प-वर्षा की।