अतिप्राचीन काल में शिबी नामक एक राजा था । वह बहुत दयालू और न्यायी राजा था । यदि कोई सहायता मांगनेके लिए आए, तो राजा उन्हें सहायता किए बिना नहीं रहता था । एक बार एक कबुतर उडते हुए शिबी राजा के सामने आया । वह भय से कांप रहा था । राजा शिबीने उसे प्रेम से हाथ में लिया। उसी क्षण एक क्रूर चील उडते हुए वहां पहुंचा । उसने राजा शिबी से कहा, ‘‘महाराज, मुझे मेरा कबुतर दे दीजिए ।’’
शिबी ने कहा, ‘‘यह कबुतर मेरी शरण में आया है। यदि मैंने इसे तुम्हारे हाथ दिया तो तुम उसे खा जाओगे। इसलिए इसका पाप मुझे लगेगा।’’ चील ने कहा, ‘‘मुझे बहुत भूक लगी है और यह कबुतर मेरा अन्न है। यदि यह अन्न आपने मुझसे छिन लिया, तो मैं मर जाऊंगा । इसलिए तो क्या इसका पाप आपको नहीं लगेगा ?’’ राजाने कहा, ‘‘तुम दूसरा कोई भी अन्न मुझसे मांग लो, मैं तुम्हें अवश्य दूंगा।’’ चील ने कहा, ‘‘ठीक है । इस कबुतर के जितना भार होगा, उतना मांस आप आपने शरिर से कांटकर दें ।’’
राजाने यह बात स्वीकार की । तराजूके एक पलडेमें कबुतर रखा गया और दूसरे पलडेंमें अपने शरिरका मांस कांटकर रख दिया । तब भी कबुतरका पलडा भारी था । अंतमें राजा स्वयं ही पलडेमें बैठने लगे । साक्षात अग्निदेव ने कबुतर का और इंद्रदेव ने चील का रुप लिया था। दोनों अपने झूठे रुप फैंककर अपने वास्तव रुपमें राजाके सामने प्रकट हुए । राजा ने दोनों देवताओ को नमस्कार किया। वे दोनों बोले, ‘‘राजा, हम आपकी परीक्षा लेने के लिए आए थे । आप वास्तव में ही दयालू और न्यायी हो ! आप के बारे में सुनकर हमने आपकी परीछा लेनी चाही , और आप इस परीछा में सफल भी हुए है। आप युगो युगो तक अपनी दयालुता व न्याय के लिए जाने जायेंगे। और यह कह कर दोनों देव गायब हो गए। देवताओ के जाते ही राजा पहले की भ्रांति ठीक हो गया। और मत्यु के बाद स्वर्ग को चला गया।
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