दूध में फूल की तरह

एक बार गुरुनानक देव मुल्तान पहुंचे । वहाँ पहले ही अनेक संत धर्म प्रचार में लगे हुए थे । एक संत ने अपने शिष्य के हाथ दूध से लबालब भरा एक कटोरा गुरुनानक देव को भेजा । गुरुनानक देव उठे ,बाग़ से चमेली का एक फूल तोड़ा और दूध पर धीरे से टिका दिया । फिर शिष्य को कहा , जाओ और अपने संत को भेट कर दो| शिष्य मन ही मन तिलमिलाया । क्योंकि उसे लगा कि गुरुनानकदेव ने हमारे संत की भेंट को अस्वीकार करके उनका घोर अपमान किया है । शिष्य ने रोष में कटोरा लेकर अपने संत को थमा दिया ।
संत ने उसे शांत किया और बोले , तुम समझे नही , इसीलिए परेशान हो रहे हो । वास्तव में बात इतनी सी है कि मैंने गुरुनानक देव से एक प्रश्न पूछा था और उन्होंने उसका बखूबी उत्तर दिया । वे आगे बोले, मेरा प्रश्न था कि यहाँ पहले से दूध के समान पवित्र चरित्र वाले महात्मा -संत विद्यमान है , तो आप यहाँ क्या करने आये है और कहाँ रहेगे ? उन्होंने उत्तर भेजा है कि जिस तरह इस फूल ने दूध का कुछ नहीं बिगाड़ा है , बल्कि इसकी शोभा ही बढ़ाई , उसी तरह फूल की भांति मैं भी यहाँ रहूँगा । नानक ने मौन रहकर भी , अपने विनम्र स्वभाव से संत को मुग्ध कर लिया प्रश्न होकर संत , नानक देव को उसी दिन अपने आश्रम ले आये ।
विवेक दिक्षित

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