महऋषि मार्कण्डेय

एक बार महऋषि मृकण्डु जी से उनके पुत्र मार्कण्डेय जी ने पूछा -” पिता जी क्या कारण है जो आप इतना दुखी दिखाई पड़ रहे है।” इस पर मह्रिषी मृकण्डु ने दुखी मन से कहा- ” पुत्र तुम्हारी माता के जब कोई संतान न हुई तो हमने मिलकर पिनाकधारी शिव की उपासना की और उन्हें प्रशन्न किया। तब उन्होंने हमें एक वर मांगने को कहा तो हमने एक पुत्र की कामना की तो भगवान शिव ने प्रशन्न होकर हमें यह वरदान दिया किन्तु उन्होंने हमें बताया की यह अल्पायु वाला १६ बर्ष ही जीवित रहेगा। और यह कह कर वो अंतर्ध्यान हो गए। अब मेरी चिंता का कारण यही तुम्हारी अल्पायु है। ”
मार्कण्डेय जी बोले – “पिता जी आप बिलकुल भी चिंता न करे। में आज से ही महादेव शिव को प्रशन्न कर अपनी दीर्घ आयु प्राप्ति का प्रयत्न करूँगा। ” तब मार्कण्डेय जी माता पिता का आशीर्वाद ले दछिण की और चलते चलते समुद्र तट पर पहुंचे। जहां उन्होंने अपने ही नाम से मार्कंडेश्वर शिवलिंग की स्थापना की और त्रिकाल स्नान कर भगवान मृत्युंजय की श्रद्धाभाव से पूजा अर्चना की और उपासना करने लगे। मृत्यु के दिन भी आया मार्कण्डेय जी रोज की तरह स्नान कर पूजा करने के लिए बैठे ही थे की। उनके कोमल कण्ड में कठोर पाश पड़ गया जब उन्होंने नज़र उठा कर देखा तो उन्हें अपने समुख काल खड़े दिखे। इस पर मार्कण्डेय जी बोले -” आप लोग कृपया मुझे भगवान मृत्युंजय की पूजा कर लेने दे फिर में आपके साथ चलता हू।” काल बोले -” काल किसी की प्रतिछा नही करता है ब्राह्मण , तुम्हारे लियू भी समय नही है। ” यह कह वह मार्कण्डेय जी के प्राण हरने के लिए उन्होंने पाश खींचा ही था की वे दूर जमीं पर जा गिरे भगवान शिव खुद अपने भक्त को दर्शन देने आये थे उन्होंने काल को सावधान करते हुए कहा -” ये मेरा परम भक्त है तुम इसे नही ले जा सकते। में इसे दीर्घ आयु होने का वरदान देता हू। और इस प्रकार महदेव ने उन्हें दीर्घ आयु होने का वरदान दिया। और उन्होंने बहुत सी महान रचनाये लिखी जो हिन्दू धर्म में बहुत प्रसिद्ध हुई।

Share with us : Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail