बंदर का इंसाफ

दो बिल्लियाँ थीं। उन्हे एक दिन रास्ते पर एक केक दिखाई दिया। एक बिल्ली ने उछल कर फौरन उस केक को उठा लिया। दूसरी बिल्ली उससे केक छीनने लगी।

पहली बिल्ली ने कहा, चल हट! यह केक मेरा है पहले मैंने ही इसे उठाया है।
दूसरी बिल्ली ने कहा, इसे पहले मैने देखा था, इसलिए यह मेरा हुआ।
उसी समय वहाँ से एक बंदर जा रहा था। दोनो बिल्लियो ने उससे प्रार्थना की, भाई तुम्ही निर्णायक बनो और हमारा झगड़ा निपटाओ।

बंदर ने कहा, लाओ यह केक मुझे दो। मैं इसके दो बराबर बराबर हिस्से करूँगा और दोनों को एक-एक हिस्सा दे दूँगा।
बंदर ने केक के दो टुकड़े किये। उसने दोनो टुकडो़ को बारी-बारी से देखा, फिर अपना सिर हिलाते हुए कहा, दोनो टुकड़े बराबर नही हैं। यह टुकड़ा दूसरे टुकड़े से बड़ा है। उसने बड़े टुकड़े से थोड़ा हिस्सा खा लिया। दोनो हिस्से बराबर नही हुए। बंदर ने फिर बड़े हिस्से में से थोड़ा खा लिया। बंदर बार बार बडे टुकड़े में से थोड़ा-थोड़ा खाता रहा। अंत मे केक के केवल दो छोटे-छोटे टुकड़े बचे। बंदर नें बिल्लयो से कहा, ओ-हो-हो! अब भला इतने छोटे-छोटे टुकड़े मैं तुम्हे कैसे दे सकता हूँ? चलो मैं ही खा लेता हूँ। यह कहकर बंदर केक के दोनो टुकड़े मुँह में डालकर चलता बना।

दो की लड़ाई मे तीसरे का फायदा।

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