बुढ़िया की सुई

एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। उसकी उम्र काफी होने के बजह से गांव के लोग उसका धयान रखते थे। एक दिन वह बुढ़िया रात को अपनी कुतिया के बहार लालटेन की रौशनी में कुछ ढूढ़ रही थी। की तभी एक गांव वाला उधर से निकला उसने उत्सुकता वस बुढ़िया से पूछा – “क्या ढूढ़ रही हो।

बुढ़िया ने कहा मेरी सुई खोगई है वही ढूढ़ रही हू। वह व्यक्ति भी बुढ़िया की सुई खोजने लगा। और देखते देखते सारा गांव बुढ़िया की सुई खोजने लगा पर सुई न मिलने पर एक गांव वाला बोला – सुई गिरी कहा थी। बुढ़िया बोली झोपड़ी के अंदर
वह गांव वाला खीज कर बोला तो सुई बहार क्यों ढूढ़ रहीहो।
बुढ़िया ने कहा बाहर रौशनी है इस लिए बहार ढूढ़ रही हू।

मित्रों, शायद ऐसा ही आज के युवा अपने भविष्य को लेकर सोचते हैं कि लाइट कहाँ जल रही है वो ये नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है ; हमारी सुई कहाँ गिरी है . हमें चाहिए कि हम ये जानने की कोशिश करें कि हम किस फील्ड में अच्छा कर सकते हैं और उसी में अपना करीयर बनाएं ना कि भेड़ चाल चलते हुए किसी ऐसी फील्ड में घुस जाएं जिसमे बाकी लोग जा रहे हों या जिसमे हमें अधिक पैसा नज़र आ रहा हो .

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