श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता और राजा दशरथ का दर्दनाक किस्सा

अपने दृष्टिहीन माता-पिता की प्यास बुझाने के लिए जब श्रवणकुमार नदी पर पानी भरने जाते हैं, तभी पास में अयोध्या नगरी के राजा दशरथ जंगल में शिकार खेल रहे होते हैं। दशरथ के पास शब्द भेदी बाण चला कर शिकार करने की विद्या होती है।श्रवणकुमार नदी पर पहुंच कर जैसे ही पानी भरने लगते हैं, तभी राजा दशरथ को ऐसा लगता है कि नदी पर कोई हिंसक प्राणी जल पीने आया है। वे उसी वक्त बिना देखे शब्द भेदी बाण छोड़ देते हैं।बाण सीधा श्रवणकुमार की छाती भेद जाता है और वो जोर से चीख पड़ते हैं। उनकी आवाज सुनकर दशरथ भी नदी की ओर दौड़ पड़ते हैं। वहां श्रवण कुमार अपनी मृत्यु से लड़ रहे होते हैं। दशरथ उनका हाथ पकड़ क्षमा मांगने लगते हैं।मरने से पहले श्रवणकुमार दशरथ से कहते हैं, “मेरे दृष्टिहीन माता पिता प्यासे हैं उन्हे यह जल पिला देना।”और इतना कह कर श्रवण कुमार अपना देह त्याग देते हैं।राजा दशरथ श्रवणकुमार के पिता ऋषि शांतनु और माता देवी ज्ञानवती को सारी हकीकत दुख और शोक के साथ काँपते हुए सुनाते हैं। अपने इकलौते बुढ़ापे के सहारे और जीवन से भी प्रिय पुत्र की मौत की खबर सुन कर देवी ज्ञानवती उसी वक्त परलोक सिधार जाती हैं।श्रवण कुमार के पिता ऋषि शांतनु करुण रुदन करते हुए, क्रोधाग्नि में जलने लगते हैं। और अपराधी राजा दशरथ को यह शाप देते हैं कि-.

जिस तरह हमारी मौत के समय हमारा इकलौता पुत्र हमारे पास नहीं है, उसी तरह जब तुम देह त्यागोगे तो तुम्हारा कोई भी पुत्र तुम्हारे पास नहीं होगा… और जिस तरह अपने पुत्र के वियोग में हम बूढ़े माँ-बाप मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं, ठीक वैसे ही तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के प्रगाढ़ दुख में होगी।

यह शाप देने के पश्चात तुरंत ही ऋषि शांतनु भी देह त्याग कर देते हैं।और जैसा कि हम सब जानते हैं, भविष्य में राजा दशरथ, अपने लाडले पुत्र राम के वनवास के दौरान मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उस समय लक्ष्मण भी राम के साथ वन में होते हैं, तथा भरत और शत्रुग्न अपने मामा के वहाँ गए होते हैं। इस प्रकार ऋषि शांतनु का शाप सत्य साबित होता है।

Share with us : Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *