पूर्व के कर्म

कुछ चोर चोरी करके भाग रहे थे। उन्हें राजा के सेनिको ने चोरी करते देखा था| वे राजकोष लूट कर भागे थे और लूट का धन भी उनके पास था | चोरो ने ऋषि को देखा तो तप में लीन जानकार चोरी का धन उनके आश्रम में छुपा दिया ।ओर वे खुद भाग गये सोचा की यंहा कौन देखने आयेगा और ऋषि तो तपस्या में लीन है इसलिए वापिस आकर इसे ले जायेंगे । सिपाही जब वंहा पहुंचे तो चोरो की तलाश में कुटिया में गये तो उन्होंने राजकोष से लूटा हुआ धन उस कुटिया में पाया तो उन्होंने सोचा कि सज़ा से बचने के लिए और पकड़े जाने के भय से चोर ऋषि का नाटक कर रहा है इसलिए उन्होंने ऋषि को गिरफ्तार कर लिया और राजा के पास ले चले | राजा ने कोई विचार नहीं किया और प्रमाण के आधार पर दोषी मानकर ऋषि को फांसी की सज़ा सुना दी |

ऋषि विचार कर रहे थे उन किस पाप का फल दिया जा रहा है इस पर उन्होंने अपने पूरे जीवन का अवलोकन कर लिया लेकिन फिर भी कुछ भी ऐसा नहीं था जिसकी इतनी बड़ी सज़ा होती और फिर उन्होंने अपने पिछले जन्मो पर विचार करना शुरू किया तो देखते है कि कई सौ जन्म पूर्व वो एक बालक है और उनके हाथ में कीड़ा है | दुसरे हाथ में एक काँटा है बालक कांटे को कीट को चुभोता है जिस से कीट दर्द के मारे तडपता है और बालक को यह एक खेल सा प्रतीत हो रहा है और खुश हो रहा है जबकि कीट तकलीफ से तडपता है |

ऋषि समझ गये उन्हें किस पाप का दंड दिया जा रहा है |पर वह तो तपस्वी है क्या इतना जप तप करने के बाद भी उनका इतना सा पाप माफ़ नहीं हुआ | ऋषि विचार ही कर रहे थे कि इतने में कुछ लोग जो ऋषि को जानते थे वो आये और राजा को ऋषि का परिचय देते हुए उनकी निर्दोषता बतलाई | राजा ने ऋषि से साधू याचना करते हुए ऋषि को मुक्त कर दिया |

इतनी देर में क्या क्या घट गया भगवान् का न्याय कितना सूक्षम है इसे तो ऋषि समझ रहे थे | मन ही मन उस कीट से क्षमा याचना करते हुए वो फिर से तपस्या में लीन हो गये |

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