उचित श्रद्धा हो और सद्भाव

एक दिन राजा ने प्रसंगवश मंत्री से पूछा कि मंत्री महोदय हमारी एक शंका का निवारण कीजिये कि बिना श्रद्धा के कोई भी मंत्र फल क्यों नहीं देता | मंत्री कुछ नहीं बोला और चुप रह गया थोड़ी देर बार एक कर्मचारी वंहा से गुजर रहा होता है मंत्री ने उसे अपने पास बुलाया |
मंत्री ने उसे अपने पास बुलाकर बोला कि जाओ फटाफट एक काम करो जाकर राजा के गाल पर एक चपत लगाओ | कर्मचारी सन्न रह गया लेकिन उसने कुछ नहीं किया और चुपचाप खड़ा रहा मंत्री ने एक बार फिर उस से वही बात बोली लेकिन इस बार भी कर्मचारी हाथ बांधे खड़ा रहा लेकिन इस बार मंत्री को ऊट पटांग हरकतें करते हुए देखकर राजा को गुस्सा आ गया और उसने आदेश दिया कर्मचारी को कि जाकर मंत्री के तीन चार चपत लगा दे |
इस बार कर्मचारी ने वैसा ही किया और उसने मंत्री के तीन चार चपत लगा दी| तो मंत्री ने नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर कहा राजन ! देखा अपने जिस तरह अभी अभी इस कर्मचारी ने ऐसी आज्ञा के लिए मुझे थोड़ी देर पहले अनाधिकारी माना और आपको अधिकारी मानकर आपकी आज्ञा का पालन किया इसी तरह यह बात मंत्रो पर भी लागू होती है | मंत्र भी योग्य व्यक्ति जिसमे उचित श्रद्धा हो और सद्भाव हो उसी की इच्छा वो पूरी करते है अन्यथा मंत्रो का ज्ञान तो दुनिया में बहुत लोगो को होता है लेकिन सभी उनसे सिद्ध पुरुष नहीं हो जाते |मंत्री का बात कहने का तरीका और मंत्री के जवाब ने राजा को संतुष्ट कर दिया और उसने मंत्री को उसकी चतुराई से खुश होते हुए राज्य का महामंत्री नियुक्त कर दिया।

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