एक बार श्रीकृष्ण काफी बीमार पड़ गए । हर दवा या जड़ी- बूटी उन पर बेअसर साबित हो रही थी । तभी श्रीकृष्ण ने स्वयं ही गोपियों से एक ऐसा उपाय करने को कहा , जिसे सुन गोपियां दुबिधा में पड़ गयी । दरसल श्रीकृष्ण ने गोपियों से चरणामृत पिलाने को कहा । उनका मानना था कि उनके परम भक्त या फिर जो उनसे अति प्रेम करता है तथा उनकी चिंता करता है यदि उसके पांव को धोने के लिए इस्तेमाल हुए जल को ग्रहण कर ले , तो वे निश्चित ही ठीक हो जाएगे । श्रीकृष्ण उन सभी गोपीयों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे , वे सभी उनकी परमभक्त थी , लेकिन उन्हें इस उपाय के निष्फल होने की चिंता सता रही थी । उनके मन में बार -बार यह बिचार आ रहा था कि यदि उनमे से किसी एक गोपी ने अपने पांव के इस्तेमाल से चरणामृत बना लिया और कृष्ण को पीने के लिए दिया , तो वह परमभक्त का कार्य तो कर देगी । किन्ही कारणों से कान्हा ठीक न हुए तो , उसे नर्क भोगना पड़ेगा । अब सभी गोपियां व्याकुल होकर श्रीकृष्ण की और ताक रही थी और किसी अन्य उपाय के बारे में सोच ही रही थी कि वहां कृष्ण की प्रिय राधा आ गयी । अपने कृष्ण को इस हालत में देख कर राधा के जैसे प्राण ही निकल गए ।
जब गोपियों ने कृष्ण द्वारा बताया गया उपाय राधा को बताया तो राधा ने एक क्षण भी व्यर्थ गवाना उचित न समझा । वह जल्द ही स्वयं के पांव धोकर चरणामृत तैयार कर श्रीकृष्ण को पिलाने केलिए आगे बढ़ी । राधा जानती थी कि वे क्या कर रही है । जो बात अन्य गोपियों के लिए भय का कारण थी , ठीक वही भय राधा के मन में भी था, लेकिन कृष्ण को ठीक करने के लिए वे नर्क भी जाने को तैयार थी |
आख़िरकार कान्हां ने चरणामृत ग्रहण किया और देखते ही देखते वे ठीक हो गए । वह राधा ही थी, जिनके प्यार एवं सच्ची निष्ठा से कृष्ण तुरंत स्वस्थ हो गए । अपने कृष्ण को निरोग देखने के लिए राधाजी ने एक बार भी स्वयं के भविष्य की चिंता नही की और वही किया जो उनका धर्म था |