राम भक्त हनुमान

एक बार हनुमानजी माता सीतासे मिलने के लिए गए थे । उन्होंने उनको आदरपूर्वक उनका वंदन किया । तभी माता सीताके मनमें विचार आया, ‘हनुमान मेरे स्वामीके भक्त हैं । वह सदैव उनकी सेवा करते हैं । उन्हें कुछ देना चाहिए ।’ ऐसा विचार कर उन्होंने अपने गले से माला उतारकर हनुमानजी के हाथोंमें सौंप दी और कहा, ‘‘मैं तुमपर प्रसन्न हूं । मेरी ओरसे यह मोतियोंकी यह माला तुम्हें दे रही हूं ।’’

हनुमानजी वह माला हाथोंमें पकडे सामने जा बैठे । उन्होंने मालाके प्रत्येक मोतीको निकालकर सूंघा, फोडा तथा देखकर फेंक दिया । ऐसा करते- करते उन्होंने मालाके समस्त मोतियोंको फोडकर फेंक दिया । लंबे समय तक उन्हें निहारती माता सीता क्रोधित हो गई। माताने पूछा, ‘‘आपको बडे प्रेमसे दी हुई मालाका यह क्या किया ? आपने सारे मोती तोड दिए । आपने ऐसा क्यों किया ?’’

तब हनुमानजीने कहा , ‘‘हमे ढूंढनेपर भी इस मालामें तथा मालाके किसी भी मोतीमें हमें राम दिखाई नहीं दिए। हम हमारे रामको ढूंढ रहे थे । जिसमें राम नहीं, वह सब मैंने फेंक दिया !’’

हनुमानजी की बातसुन कर माता सीता समझगई कि, जो माला उन्होंनेदी थी, वह श्रीरामके स्मरणके बिना दी थी । उन्हें इसका भान हुआ कि, वास्तवमें श्रीरामही सबकुछ करते हैं । माताने हनुमानजी से क्षमा मांगी । तदुपरांत श्रीरामजीका स्मरणकर उन्होंने हनुमानजीको दूसरी माला दी । हनुमानजीने वह माला तुरंत अपने गलेमें डाल दी!

बच्चों, जो कार्य भगवान का धयान कर के किया जाता है, वह भगवन को अति प्रिय होता है। हमेमें भी प्रत्येक कार्य को अपने कुलदेवता को स्मरण कर एवं उन्हें प्रार्थना करने के उपरांत ही प्रारंभ करना चाहिए ।

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