मूर्खता का फल

एक बढ़ई था। एक बार वह लकड़ी के लंबे लट्ठे को आरे से चीर रहा था। उसे इस लट्ठे के दो टुकडे़ करने थे। सामनेवाले पेड़ पर एक बंदर बैठा हुआ था। वह काफी देर से बढ़ई के काम को बडे़, ध्यान से देख रहा था। बढ़ई ने दोपहर का भोजन करने के लिये काम बंद कर दिया। अब तक लट्ठे का केवल आधा ही भाग चीरा जा चुका था। इसलिए उसने लट्ठे के चिरे हुए हिस्से में एक मोटी सी गुल्ली फँसा दी। इसके बाद वह खाना खाने चला गया।
बढ़ई के जाने के बाद बंदर पेड़ से कूदकर नीचे आया। वह कुछ देर तक इधर-उधर देखता रहा। उसकी नजर लकड़ी की गुल्ली पर गड़ी हुई थी। वह गुल्ली के पास गया और उसे बड़ी उत्सुकता से देखने लगा। वह अपने दोनों पाँव लट्ठे के दोनों ओर लटकाकर उस पर बैठ गया। इस तरह बैठने से उसकी लंबी पूँछ लकडी के चिरे हुए हिस्से में लटक रही थी। उसने बड़ी उत्सुकता से गुल्ली को हिलाडुला कर देखा फिर वह उसे जोर-जोर से हिलाने लगा। अंत में जोर लगा कर उसने गुल्ली खींच निकाली। ज्योंही गुल्ली निकली की लट्ठे के दोनो चिरे हुए हिस्से आपस में चिपक गये। बंदर की पूँछ उसमे बुरी तरह से फंस गयी। दर्द के मारे बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसे बढ़ई का डर भी सता रहा था। वह पूँछ निकालने के लिए छटपटाने लगा। उसने जोर लगाकर उछलने की कोशिश की, तो उसकी पूँछ टूट गयी। अब वह बिना पूँछ का हो गया।

शिक्षा –अनजानी चीजो से छेड़छाड़ करना खतरनाक होता है।

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