असुरोंके विनाश हेतु सर्वस्वका त्याग करनेवाले ऋषि दधीचि !

बालमित्रो, प्राचीन कालमें वृत्रासुर नामका एक दैत्य बडा ही उन्मत्त हो गया था । अति बलवान होनेके कारण देवताओं को उसे हराना कठिन हो गया । उसके विनाश हेतु भगवान विष्णुने सुझाया कि दधीचिऋषिकी अस्थियोंसे बङ्का बनाए, तो उससे वृत्रासुरका नाश हो सकता है । दधीचिऋषि अति दयालु एवं सबकी सहायता करनेवाले थे । इंद्रदेव दधीचिऋषिके पास गए, और इंद्रदेवने कहा, मैं आपके पास याचक बनकर आया हूं । दैत्य वृत्रासुरका नाश करनेके लिए एक बङ्का बनाना है । इसके लिए आपकी अस्थियां चाहिए । क्षणभर भी विचार न करते हुए दधीचिऋषिने कहा, ‘‘मैं प्राणत्याग कर अपनी देह ही आपको अर्पित करता हूं । फिर आप देहका जो चाहें कर सकते हैं । दधीचिऋषिने योगबलसे प्राणत्याग किया । फिर उनकी देहकी अस्थियोंसे षट्कोनी बङ्का बनाकर इंद्रदेवको दिया गया । तदुपरांत बङ्काको अभिमंत्रित कर उसका उपयोग करनेपर, वृत्रासुरका नाश संभव हुआ ।

बच्चो, वृत्रासुरका नाश करनेके लिए दधीचिऋषिने अपने प्राण सहजतासे दे दिए । इससे ध्यानमें आता है कि ऋषिमुनि कितने महान थे। हम भी जितना हो सके अच्छे कामके लिए त्याग कर अपनी उज्ज्वल परंपराको बनाए रखें ।

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