ऋषि कणाद

बहुत बर्ष पहले एक ऋषि थे उनका नाम था कणाद | जब किसान अपनी फसल काट लेते थे तो उसके बाद जो अन्न के दाने खेत में बिखरे रह जाते थे उन्ही को बीन बीन कर वो अपना काम चलाया करते थे इसी वजह से उनका नाम कणाद पड़ा | उन जेसा गरीब कौन होगा अंदाजा लगाया जा सकता है | देश के राजा को जब यह दुखदायी जानकारी मिली तो बहुत सी धन सामग्री लेकर मंत्री को उन्हें भेंट करने के लिए उनके पास भेजा | मंत्री जब ऋषि के पास पहुंचा तो महर्षि ने कहा “मैं तो सकुशल हूँ तुम जाओ इस धन को लेकर उन गरीबो में बाँट जो जिन्हें वाकई इसकी जरुरत है |”

इस प्रकार राजा ने तीन बार मंत्री को भेजा और तीनो बार ऋषि ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया | अंत में राजा खुद महर्षि के पास गया और जाते समय खूब धन धान्य ले गया और कणाद से प्रार्थना की कि आप स्वीकार करलें तो इस पर ऋषि ने राजा से कहा मेरे पास सब कुछ है इन्हें उन लोगो में बाँट दो जिन्हें इसकी जरुरत है | राजा हेरान हो गया और सोचने लगा “तन पर एक लंगोटी और ऋषि कह रहे है मेरे पास सब कुछ है |” राजा ने लौटकर सारी बात आकर रानी को बताई तो रानी ने राजा से कहा अपने भूल की आपको ऐसे ऋषि को कुछ देने नहीं जबकि उनके पास से कुछ लेके आना चाहिए था राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और वो उसी रात ऋषि के पास वापिस गया और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी | ऋषि ने कहा “गरीब कौन है ?” मुझे देखो और अपने आप को देखो | बाहर नहीं भीतर | मैं कुछ नहीं मांगता कुछ भी चाह नहीं है इसलिए अनायास ही सम्राट हो गया हूँ |

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