सेनापति की दुविधा

एक बार एक राज्य पर पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया तो जिस राज्य पर आक्रमण हुआ उसे पता लगा की पडोसी राजा की सेना आ रही है तो उसने अपने सेनापति को अपने राज्य की सीमा से बाहर उन्हें खदेड़ने को भेजा| सेनापति अहिंसावादी था वह हिंसा नहीं चाहता था लेकिन फिर भी राजा का आदेश था तो यही सोचकर वह मुश्किल में पड़ गया कि अब क्या किया जाये।
वह एक साधू के पास गया और बोला -” गुरूजी मेरी एक दुविधा है कि पडोसी राजा ने हम पर आक्रमण कर दिया है अब अगर मैं सेना को उन्हें रोकने का आदेश देता हू तो हिंसा होगी और हजारों सैनिक मारे जायेंगे। जबकि में ये नहीं चाहता और अगर में ऐसा नही करता हू तो वो लोग हमारे राज्य में आकर निर्दोष लोगो की हत्या करेंगे और फसलों और सम्पतियों को नुकसान पहुंचाएंगे | इसलिए मैं दुविधा में हूँ कि क्या किया जाये ।”
इस पर साधू ने उस से कहा-“अगर तुम हिंसा के भय से उन्हें रोकने का प्रयत्न नहीं करोगे तो वे लोग तुम्हारे राज्य में आकर बेगुनाह लोगो को मरेंगे और फसलों को नष्ट करेंगे तो उन सब का पाप तुम्हारे सिर आयेगा|” इस पर सेनापति ने सिर झुका लिया |
साधू ने आगे कहा- “क्या तुम्हारी सेना उनको रोकने में सक्षम है?”
सेनापति ने कहा- “हाँ” है और अगर उन्हें आदेश दिया जाये तो वो दुश्मन के छक्के छुड़ा देगी।
इस पर साधू ने कहा- “ऐसी दशा में प्रजा और राज्य की सम्पतियो की रक्षा करना ही तुम्हारा परम धर्म है क्योंकि यही तुम्हारा प्रतिरक्षा धर्म है|” सेनापति को अपने सवाल का जवाब मिल गया और उन्होंने सीमा पर जाकर दुश्मनों का सफाया कर दिया ।
स्पष्ट है अहिंसा का मतलब कायरता नहीं है अर्थात अहिंसा का मतलब है किसी पर आक्रमण नहीं करना किसी पर अत्याचार नहीं करना लेकिन अगर कोई हम पर आक्रमण करे तो वीरता पूर्वक उसका प्रतिरोध करना चाहिए |

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