दूसरों के हितों के खातिर तोड़ी मूर्ति

राजा महेंद्र कीर्ति विद्वतजनों का बहुत सम्मान किया करते थे । उनके दरवार में दूर -दूर से चित्रकार,मूर्तिकार लेखक, कवि आदि आते है और अपनी रचनाओ पर भरपूर प्रंशंसा का पुरस्कार पाते थे । एक दिन किसी दूरस्थ स्थान से एक ख्यात मूर्तिकार दरबार में आया उसने राजा को तीन मूर्तियां भेट की ओर बोला , राजन , जब तक ये तीनो मूर्तियां आपके दरबार में रहेगी ,तब तक राज्य में सुख -संबृद्धि बनी रहेगी ।

राजा ने प्रसन्न होकर मूर्तिकार को इनाम में सोने के सिक्को से भरा एक थैला दिया । राजा ने अपने सेवको को उन मूर्तियों के रख-रखाव का आदेश दिया , जिसका यथाविधि पालन होने लगा । एक दिन सफाई के लिए नियुक्त सेवक के हाथ काम करते वक़्त तीनो में से एक मूर्ति गिरकर टूट गई । चूंकि मुर्तियों का संबंध राज्य के सुख और बैभव से था , और उनके लिए भारी कीमत भी चुकाई गई थी इसलिए राज्यसभा में इस पर विचार हुआ कि सेवक को कौन सी सजा सुनाई जाए | न्यायधीश इस बात पर एकमत हुए कि सेवक को मृत्तुदण्ड दिया जाए । राजा ने आदेश की तस्दीक भी कर दी ।

सेवक को सजा सुना दी गई । आदेश सुनते ही उस सेवक ने बाकी दोनों मूर्तियों को भी पटककर तोड़ दिया । इस घटना की जानकारी होते ही राजा महेंद्र कीर्ति ने उस सेवक को बुलाया और इस विचित्र बर्ताब के बारे में पूंछा सेवक ने जबाब दिया, किसी न किसी के हाथ से तो ये मूर्तियां टूटनी ही थी । ऐसा करके मैंने दो अन्य व्यक्तियों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया ।
राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने उसे क्षमा कर दिया । सही कहा गया है कि दुसरो का हित चिंतन करने वाले का भगवान् भी भला करते है । अतः सदैव स्वमं से पहले दुसरो का ध्यान रखे ।
स्वामी सत्यभक्त

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