पर्वत पर जा बसे श्रीगणेश

रावण वध के बाद भगवान राम ने अपने भक्त और रावण के भाई विभीषण को भगवान विष्णु के ही एक रूप रंगनाथ की मूर्ति प्रदान की थी । विभीषण वह मूर्ति लेकर लंका जाने वाले थे । वे असुर कुल के थे , इसीलिए देवता नही चाहते थे कि मूर्ति विभीषण के साथ लंका जाए ।

सभी देवताओ ने भगवान गणेश से सहायता मांगी । उस मूर्ति को लेकर यह मान्यता थी कि उसे जिस जगह रख दिया जाएगा , वह हमेशा के लिए उसी जगह पर स्थापित हो जाएगी । जब विभीषण त्रिची पंहुचे , तो वहां कावेरी नदी को देखकर उसमे स्नान करने का विचार उसके मन में आया । वह मूर्ति संभालने के लिए किसी व्यक्ति को खोजने लगे । भगवान गणेश एक बालक का रूप धारण कर वहां आ गए । विभीषण ने बालक को भगवान रंगनाथ की मूर्ति दे दी और उसे जमीन पर न रखने की प्रार्थना की ।
विभीषण के जाने पर गणेश ने उस मूर्ति को जमीन पर रख दिया।जब विभीषण वापिस आए । तो उन्होंने मूर्ति को उठाने की बहुत कोशिश की , लेकिन उठा न पाए । ऐसा होने पर उन्हें बहुत क्रोध आया और उस बालक की खोज करने लगे । भगवान गणेश भागते हुए पर्वत के शिखर पर पहुंच गए , आगे रास्ता न होने पर गणेश उसी स्थान पर बैठ गए । जब विभीषण ने बालक को देखा तो क्रोध में सिर पर वार कर दिया । तब भगवान गणेश ने उन्हें अपने रूप के दर्शन दिए । विभीषण ने उनसे क्षमायाचना की । तब से भगवान गणेश उसी पर्वत की चोटी पर उच्ची पिल्लयार के रूप में स्थित है ।
उच्ची पिल्लयार मंदिर तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली (त्रिचि) नामक स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी पर स्थित है ।

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