एकता में शक्ति

गोदावरी के तीर पर एक बड़ा सैमर का पेड़ थ। वहाँ अनेक दिशाओं से आकर दोपहर में पक्षी आराम करते थे। एक दिन एक बहेलिया वहां आया फिर उसने चावलों की कनकी को बिखेर कर जाल फैलाया और खदु वहाँ छुप कर बैठ गया। उसी समय में अपने झुण्ड के साथ आकाश में उड़ते हुए चित्रग्रीव नामक कबूतरों के राजा ने चावलों की कनकी को देखा, और वहां आराम करने व चावल खाने के लिए उतरनें लगा तभी उसके घुण्ड का सबसे बूढ़ा कबूतर उन्हें रोकते हुए बोला — इस निर्जन वन में चावल की कनकी कहाँ से आई ? पहले इसका निश्चय करो। मैं इसको कल्याणकारी नहीं देखता हूँ। अवश्य इन चावलों की कनकी के लोभ से हमें किसी बड़ी मुसीबत का सामना करना पद सकता है।
यह सुनकर एक कबूतर घमंड से बोला — अरे, अभी” तो तुम ही कह रहे थे निर्जन वन इस वन में कैसा खतरा, कौन आएगा ऐसे वन में”। यह सुनकर भी सब कबुतर बहेलिये के चावल के कण जहाँ छीटे थे, वहाँ बैठ गये। दाना पाने के लालच से उतरे सब कबूतर जाल में फँस गये और फिर जिसके वचन से वहाँ उतरे थे उसको भला बुरा कहने लगे। सबको उसकी निंदा करते देख चित्रग्रीव बोला– “” इसका कुछ दोष नहीं है।’ चित्रग्रीव बोला आपस में एक दूसरे से लड़ने से कुछ नही होगा। उस बूढ़े कबूतर ने राजा को धैर्य रखने के लिए कहा और बोला – राजन आप घबराये नही यही पास मेरा मित्र हिरण्यक नामक चूहों का राजा गंडकी नदी के तीर पर चित्रवन में रहता है, वह हमारे फंदों को काटेगा।। हमे बस इतना करना चाहिए की सब एक साथ उत्तर की और उड़े और अपने साथ ये जाल भी उड़ा ले चले। जब कबूतरो ने देखा कि लोभी बहेलिया लौट रहा है तब कबूतर ने कहा कि अब क्या करना चाहिए।
यह सुनकर सब कबूतर जाल को लेकर एक साथ उत्तर दिशा की और उड़े।
और वह बहेलिया जो दूर की एक झाड़ी में छुपा था उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ा। किन्तु सभी कबूतर एक ही दिशा में तेजी से उड़ गए। बहेलिया जाल को लेकर उड़ने वाले कबूतरों को दूर से देख कर पीछे दौड़ता हुआ सोचने लगा, ये पक्षी मिल कर मेरे जाल को लेकर उड़ रहे हैं, परंतु जब ये गिरेंगे तब मेरे वश में हो जायेंगे। फिर जब वे पक्षी आँखों से ओझल हो गये तब बहेलिया लौट गया।
जब सभी कबूतर जाल को साथ में लेकर सह हिरण्यक के बिल के पास पहुंचे। हिरण्यक सदा आपत्ति आने की आशंका से अपना बिल सौ द्वार का बना कर रहता था। फिर हिरण्यक कबूतरों के उतरने की आहट से डर कर चुपके से बैठ गया। चित्रग्रीव बोला– हे मित्र हिरण्यक, हमसे क्यों नहीं बोलते हो ? फिर हिरण्यक उसकी बोली पहचान कर शीघ्रता से बाहर निकल कर बोला — अहा ! मैं पुण्यवान हूँ कि मेरा प्यारा मित्र चित्रग्रीव आया है।
अपने मित्र को जाल में फँसा देखकर आश्चर्य से क्षण भर ठहर कर बोला”– मित्र, यह क्या है ? चित्रग्रीव बोला”– मित्र, यह हमारे पूर्वजन्म के कर्मो का फल है। और चित्रग्रीव ने उसे पूरी बात बता दी।
हिरण्यक ने बिना देरी के सभी कबूतरो को जाल काट कर आजाद कर दिया। सभी कबूतर उसका धन्वाद करने लगे और कसम खाई की आज के बाद लालच नही करेंगे .

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