समर्पण

एक साधु द्वार-द्वार घूमकर भिक्षा मांग रहा था । वृद्ध तथा दुर्बल उस साधुको ठीकसे नहीं दिखाई देता था । वह एक मन्दिरके सामने खडा होकर भिक्षा मांगने लगा । यह देखकर भगवान पाण्डुुरंगने उससे कहा, ” महाराज, आगे बढिए । इस घरसे आपको भिक्षा नहीं मिलनेवाली है ।”

साधु बोले, ‘‘ किसीको कुछ न देनेवाले इस घरका स्वामी कौन है ?” पाण्डुुरंगने कहा, ‘‘अरे, यह घर नहीं, मन्दिर है । इसका स्वामी परमेश्वर है ।” यह सुनकर उस साधुने एकबार आकाशकी ओर देखा । उसका हदय शरणागतभावसे भर आया । वह आकाशकी ओर देखते हुए हाथ फैलाए वहीं खडा रहा । पश्चात, पाण्डुुरंगने उसे मन्दिरके द्वारपर नाचते हुए देखा । उसकी आंखें अलौकिक तेजसे चमक रही थीं । उसके बूढे शरीरसे दिव्य प्रकाश फैल रहा था । पाण्डुुरंगने उससे आनन्दित होनेका कारण पूछा, तो साधुने कहा,

‘‘जो मांगता है, उसे मिलता है । केवल समर्पणभाव होना  चाहिए ।”

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