“ सम्राट युद्धिष्ठिर ” द्वारा अपनी माता “देवी कुंती” और समस्त नारी जाती को दिया हुआ शाप

दुर्योधन का आखिरी महान योद्धा अंग राज कर्ण मारा जा चुका था । देवी कुंती अपनी आँखों में आँसू लिए कुरुक्षेत्र रण में आ पहुँचती हैं। जहां रात में अर्जुन, युद्धिष्ठिर, नकुल, सहदेव, और श्री कृष्ण, जीवित सैनिकों से, मृत सैनिकों के शव उठवा रहे होते हैं। तभी देवी कुंती अंग राज कर्ण के मृत देह के पास बैठ कर विलाप करने लगती हैं।

अपनी माता को शत्रु के शव पर विलाप करते देख अर्जुन, युद्धिष्ठिर, नकुल, सहदेव, और भीम देवी कुंती से पूछने लगते हैं कि वह क्यों ऐसा कर रही है। तभी कुंती वर्षों से छुपाया भेद खोल देती हैं कि कर्ण उन्हीं का ज्येष्ठ पुत्र है। यह बात सुन कर सारे भाई अपनी माता से बहुत क्रुद्ध हो जाते हैं। और इतना बड़ा भेद छुपाने के लिए युद्धिष्ठिर अपनी माता देवी कुंती और समस्त नारी जाती को यह शाप देते हैं कि-

आज के पश्चात कोई भी नारी मन में कोई भेद नहीं छुपा पाएगी, भेद छुपाने की नारी जाती की वृति ही नहीं रहेगी।

युद्धिष्ठिर का यह कहना था कि अगर हमे पता होता की कर्ण हमारा ज्येष्ठ भ्राता है, तो हम कदापी उसके प्राण नहीं हरते। और उसी को राजा बना देते। पर कृष्ण ने ऐसा होने नहीं दिया क्योंकि अगर कर्ण को राज्य मिलता तो वह मित्रता का ऋण उतारने के लिए, राज्य दुर्योधन को दे देता और दुर्योधन की विजय यानी अधर्म की धर्म पर विजय। जिसे कभी कृष्ण होने नहीं दे सकते थे।

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