हस्तिनापुर राज्य में दो साधक अपनी देनिक साधना में लीन थे| तभी एक देवर्षि को उधर आते देख दोनों साधक बोल उठे- “महर्षि आप देवलोक जा रहे है न” तो देवर्षि ने कहा-” हाँ !”
इस पर दोनों साधक बोल उठे- ” आप भगवान् से ये जानकर अवश्य एक सन्देश ले आना की हमारी मुक्ति कब होगी | देवर्षि चले गये करीब एक महीने बाद उनका फिर आना हुआ तो दोनों साधकों ने उनसे पुछा कि भगवान ने उनकी मुक्ति के विषय में क्या कहा है तो दोनों साधको से देवर्षि ने कहा की भगवान् का कहना है कि दोनों की मुक्ति पचास साल बाद होगी |
इस पर एक साधक सोचने लगा कि मेने दस वर्ष तक कठोर साधना की है शरीर को दुर्बल किया है इसके बाद भी इतने साल बाकि है जबकि मैं और अधिक नहीं रुक सकता और वो वापिस अपने परिवार में जा मिला |
दुसरे साधक ने संतोष की साँस ली और सोचा कि चलो जीवन मरण से मुक्ति का कुछ तो समय निर्धारित हुआ आशा करता हूँ कि मेरे इतने साल की तपस्या मेरे काम आयेगी और इस प्रकार सोचकर वह फिर से समाधि में और भी अधिक मनोयोग से लीन हो गया |
सच ही कहते है सच्चे मन से और सम्पूर्ण समर्पण भाव से की गयी साधन कभी निष्फल नहीं होती |
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