सज्जनता और शालीनता की विजय यात्रा

एक राजा ने अपने राजकुमार को किसी दूरदर्शी मनीषी के आश्रम में सुयोग्य शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा। उसे भर्ती कर लिया गया और पढ़ाई चल पड़ी। एक दिन मनीषी ने राजकुमार से पूछा- तुम क्या बनना चाहते हो यह तो बताओ? तब तुम्हारी शिक्षा का क्रम ठीक से बनेगा।
राजकुमार ने उत्तर दिया- वीर योद्धा।

मनीषी ने उसे समझाया, यह दोनों शब्द तो एक जैसे हैं, पर इनमें अन्तर बहुत है। योद्धा बनना है तो शस्त्र कला का अभ्यास करो और घुड़सवारी सीखो, किन्तु यदि वीर बनना हो तो नम्र बनो और सबसे मित्रवत् व्यवहार करने की आदत डालो। सबसे मित्रता करने की बात राजकुमार को जँची नहीं और वह असन्तुष्ट होकर अपने घर वापस चला गया। पिता ने लौटने का कारण पूछा, तो उसने मन की बात बता दी। भला सबके साथ मित्रता बरतना भी कोई नीति है?

राजा चुप हो गया। पर जानता था, उससे जो कहा गया है वो सच है। कुछ दिन बाद राजा अपने लड़के को साथ लेकर घने जंगलों में वन- विहार के लिए गया। चलते- चलते शाम हो गई। राजा को ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। उठा तो देखा कि उसकी अँगूठी में जड़ा कीमती हीरा निकलकरपथरीले रेत में गिरकर गुम हो गया है। हीरा बहुत कीमती था, सो राजा को बहुत चिन्ता हुई, पर किया क्या जाता, अन्धेरी रात में कैसे ढूँढ़ते?

राजकुमार को एक उपाय सूझा। उसने अपनी पगड़ी खोली और वहाँ का सारा पथरीला रेत समेटकर पोटली में बाँध लिया और उस भयानक जंगल को पार करने के लिए निकल पड़े।

रास्ते में सन्नाटा तोड़ते हुए राजा ने पूछा- ‘‘हीरा तो एक छोटा- सा टुकड़ा है, उसके लिए इतनी सारी रेत समेटने की क्या जरूरत थी?’’ राजकुमार ने कहा- ‘‘जब हीरा अलग से नहीं मिलता, तो यही उपाय रह जाता है कि उस जगह की सारी रेत समेटी जाय और फिर सुविधानुसार उसमें से काम की चीज ढूँढ़ ली जाय।’’

राजा चुप हो गया किन्तु कुछ दूर चलकर उसने राजकुमार से पुनः पूछा कि फिर मनीषी अध्यापक का यह कहना कैसे गलत हो गया कि ‘सबसे मित्रता का अभ्यास करो।’ मित्रता का दायरा बड़ा होने से ही तो उसमें से हीरे ढूँढ़ सकना संभव होगा।

राजकुमार का समाधान हो गया और वह फिर उस विद्वान् के आश्रम में पढ़ने के लिए चला गया।

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