एक थी बिल्ली। मुरगी के बच्चे उसे बहुत ही भाते थे। रोजाना दो-चार बच्चों को वह कहीं-न-कहीं से खोज-खाजकर खा जाती थी। एक दिन उसे भनक मिली कि एक मुरगी बीमार है। वह हमदर्दी जताने मुरगी के दरबे के पास आई और कहा, ‘‘कहो बहन, कैसी हो ? क्या मैं तुम्हारी ऐसी हालत में तुम्हारे कुछ काम आ सकती हूँ ? तुम्हारी सेवा करना मेरा फर्ज भी तो है।’’
बीमार मुरगी क्षण भर सोचती रही। फिर बोली, ‘‘अगर तुम सचमुच मेरी सेवा करना चाहती हो तो मेरे परिवार से दूर रहो—और अपनी जमातवालों से भी ऐसा ही करने को कहो।’’
दुश्मन की शुभकामनाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
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