दो मित्र थे । वे बड़े ही बहादुर थे उनमे से एक ने अपने बादशाह के अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई । बादशाह बड़ा ही कठोर और बेरहम था जब उसे मालूम हुआ तो उसने उस नौजवान को फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया । नौजवान ने बादशाह को कहा आप जो कर रहे है वो ठीक है और मैं ख़ुशी ख़ुशी मौत के आगोश में चला जाऊंगा लेकिन आप मुझे थोड़ी मोहलत दीजिये कि मैं गांव जाकर अपने बच्चो से मिल आऊं । बादशाह ने कहा नहीं ऐसा नहीं हो सकता मुझे तुम पर भरोसा नहीं है तो उस नौजवान के मित्र ने कहा कि महाराज मैं इसकी जमानत देता हूँ अगर ये लौट कर नहीं आये तो इसकी जगह मुझे फांसी दे दीजियेगा तो बादशाह हैरान रह गया क्योकि अब तक उसने ऐसा कोई आदमी नहीं देखा था तो दूसरो के लिए अपनी जान देने को तैयार हो तो बादशाह ने उसे गांव जाने की सहमति दे दी और उसे छह घंटे का टाइम दिया गया ।
नौजवान चला गया और उसने देखा कि उसे लौटने में पांच घंटे का समय लगेगा और वो आराम से जाकर आ सकता है अपने बच्चो से मिलकर लौटते समय रस्ते में उसका घोडा ठोकर खाकर गिर गया और फिर उठा ही नहीं और उस नौजवान को भी चोट आई और इसी वजह से उसे आने में देरी हो गयी उधर छह घंटे बीत जाने के बाद उसका मित्र खुश हो रहा था और भगवान से प्रार्थना कर रहा था की उसका मित्र नहीं आये ताकि वो अपने दोस्त के काम आ सके । मियाद पूरी हो जाने के बाद मित्र को फांसी पर लटकाया जा रहा था कि नौजवान आ पहुंचा और उस से कहा अब तुम घर जाओ और मुझे विदा करो तो मित्र ने कहा यह नहीं हो सकता तुम्हारी मियाद पूरी हो गयी है तो नौजवान ने कहा ये मेरी सज़ा है सो जाहिर है मुझे इसे सहने दो तुम अपने घर जाओ ।
दोनों मित्रो की सज़ा को बादशाह देख रहा था तो उसकी आँखे डबडबा आयीं और उसने दोनों को बुलाकर कहा मेने तुमको माफ़ कर दिया है और तुम्हारी दोस्ती ने मेरे दिल पर गहरा असर डाला है और उसके बाद बादशाह ने कभी किसी पर जुल्म नहीं किया |