विध्या ददाति विनयम

एक गरीब आदमी था वह नाव चलता था और उससे होने वाली आमदनी से अपने परिवार का पालन पोसड़ करता था। एक बार उसकी नाव में एक पंडित जी आकर बैठे। पंडित जी को गंगा पार जाना था। नाविक ने नाव दूसरे किनारे की और बढ़ा दी।

पंडित जी ने नाविक से पूछा क्या पढ़ना लिखना जानते हो?
नाविक ने कहा-” नही ”

फिर पंडित जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की ?”
पंडितजी ने पंडिताई का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।”

फिर विध्या के मद में पंडित जी ने तीसरा प्रश्न पूछा “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो ?”

अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब पंडित जी ने विजयीमुद्रा में कहा “ ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।”

तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी, और पंडितजी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?”

पंडित जी घबराहट में बोले “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है ?”

नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा ,“तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी। ”

कुछ ही देर में नौका पलट गई। और पंडित जी बह गए।

मित्रों ,विद्या दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। लेकिन कभी-कभी ज्ञान के अभिमान में कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं और दूसरों का अपमान कर बैठते हैं। याद रखिये शास्त्रो का ज्ञान समस्याओं के समाधान में प्रयोग में होना चाहिए सशत्र बना कर हिंसा करने के लिए नहीं।

कहा भी गया है, जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी डालियाँ झुक जाती हैं। धन प्राप्ति होने पर सज्जनों में शालीनता आ जाती है। इसी तरह , विध्या जब विनयी के पास आती है तो वह शोभित हो जाती है। इसीलिए संस्कृत में कहा गया है , ‘विध्या ददाति विनयम।’

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