ज्यादा खाने का परिणाम

चकमक चूहा अपने आसपास के चूहों में अनोखा था। दरअसल बाकी चूहे तो काले या भूरे थे, पर उसके शरीर का रंग सफेद था। औरों के बीच वह चमकता रहता था, इसलिए उसकी मां ने उसे प्यार से नाम दिया था चकमक वह सचमुच औरों से अलग था। जब चूहों की टोली कहीं खाना खाने जाती तो और चूहे तो अपने हिस्से का खाना लेकर भाग आते थे, पर चकमक पहले वहीं डटकर खाता, फिर बचा हुआ अपने साथ घर लाता। उसकी मां ने कई बार उसे टोका कि लालच करना ठीक नहीं, किसी दिन फंस जाओगे। पर चकमक को अपने ऊपर बहुत विश्वास था। वह सबकी बातों को हवा में उड़ा देता।

एक बार जिस बंगले में वे बिल बनाकर रहते थे, उसमें मालिक की बेटी की सगाई थी। सारा घर पकवानों की खुशबू से महक रहा था। चकमक से रहा नहीं जा रहा था। उसने दो-तीन चूहों को साथ लिया और जहां खाना बन रहा था, उसका चक्कर लगाने चल दिया। बिल से बाहर आते ही चकमक की आंखें चौधियां गईं। पूरा घर लाइट से सजा हुआ था। बड़ी-बड़ी मेजों पर पकवान रखे थे। सामने ही एक ओर मालिक की बेटी रीना अपनी मां के साथ खड़ी अंगूठी देख रही थी, जो सगाई में पहननी थी। तभी उसके हाथ से अंगूठी गिरी और लुढ़कते हुए चकमक के बिल के पास आकर रुक गई।

पता नहीं चकमक को अंगूठी क्यों इतनी अच्छी लगी कि कोई जब तक अंगूठी को देखने नीचे झुकता, वह भागा और अंगूठी को मुंह में दबाकर बिल में घुस गया। बाकी चूहे भी उसके साथ बिल में आ गए।

चकमक के पास एक बड़ा सा गोल चक्र देखकर सब चूहे कौतुहलवश वहां इकट्ठे हो गए। चकमक की मां ने पूछा, ‘यह कहां से ले आया? यह कोई खाने की चीज है, जो लाए हो?  जाओ, इसे वापस बाहर रख आओ। मालकिन परेशान हो रही होंगी। हम उनके घर में रहते हैं। उन्हें परेशान करना ठीक नहीं।’

‘नहीं, मालकिन की बेटी इसे पहन रही थी उंगली में। बड़ी अच्छी लग रही थी। मैं इसे पहनूंगा।’ चकमक खुशी से बोला और अंगूठी के आसपास चक्कर लगाने लगा। ‘बुद्धू, यह बहुत बड़ी है। तुम नहीं पहन सकते। और हम चूहे ऐसी चीज नहीं पहनते। तुम कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाओ।’

पर मां की बात चकमक ने अनसुनी कर दी। वह आगे बढ़ा और अंगूठी को ध्यान से देखने लगा। फिर अपने आगे के हाथ की एक उंगली उसमें डाली। उंगली क्या, उसका पूरा हाथ उसमें चला गया, फिर भी अंगूठी बड़ी थी। निराश चकमक ने अंगूठी का एक चक्कर और लगाया। फिर पता नहीं क्या मन में आया, उसने उसमें अपना मुंह डाल दिया।

अभी छोटा तो था ही, उसका आधा शरीर उसमें घुस गया। उसने थोड़ा और जोर लगाया तो उसका आधा शरीर अंगूठी के पार हो गया। अब अंगूठी उसके शरीर के बीचोंबीच पेट के पास फंसी थी। यह देख बाकी चूहे खूब हंसे। पर उसकी मां को यह पसंद नहीं आया। वह बोली, ‘जल्दी निकलो इसके अंदर से।’

चकमक ने जोर लगाया, पर वह और फंस गया। अंगूठी उसके बिल्कुल पेट पर फंसी थी। वह कूद कूदकर परेशान हो गया, पर अंगूठी उसके पेट पर से निकल ही नहीं रही थी। उधर पार्टी खत्म हो गई थी और बाकी चूहे भूख से बिलबिलाने लगे थे, पर चकमक को छोड़कर कैसे जाएं,  इसलिए सब मन मारकर उसके पास खड़े थे। चकमक की मां चिंतित होकर बोली, ‘अब क्या करें?’ चकमक वीरता से बोला, ‘करना क्या है? चलो खाना खाने चलते हैं। बड़े दिनों बाद इतना बढ़िया खाना हाथ लगने वाला है। इस मौके को कैसे छोड़ दें?’

‘तुम कैसे चलोगे? तुम तो अंगूठी में फंसे हो।’

‘मैं लुढ़ककर चल लूंगा। आप चिंता न करें।’ चकमक ने हिम्मत करते हुए कहा।

सब चूहे चकमक के साथ बिल से बाहर आए। बाहर सन्नाटा था। बस दूर, मालकिन की बेटी के रोने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी, ‘मुझे मेरी वह अंगूठी चाहिए, वह मेरी सगाई की अंगूठी है।’ चूहों ने सुना, फिर दावत उड़ाने में लग गए। चकमक तो दावत पर दावत उड़ाए जा रहा था। कुछ देर तो वह ठीक से खाता रहा, पर जैसे-जैसे खाना उसके पेट में जाता गया, उसका पेट फूलता गया।

अंगूठी पेट पर फंसी होने के कारण उसके पेट में दर्द होने लगा, वह निढाल पड़कर जोर-जोर से सांस लेने लगा। उसकी हालत देखकर सारे चूहे चिंतित हो गए। किसी तरह सब उसे धक्का देते हुए बिल में लाए। पेट के दर्द से वह रोने  लगा। उसकी मां बोली,‘मैं तब से कह रही थी कि अंगूठी से न खेलो। अब बताओ क्या करें?’

‘कुछ भी करो, पर मुझे अंगूठी से बाहर निकालो, नहीं तो मैं मर जाऊंगा।’ चकमक रोते हुए चिल्लाया।

‘किसने कहा था ठूंस ठूंसकर खाने के लिए?’ एक चूहा बोला। उसकी बात सुनते ही एक बूढ़े चूहे की आंख चमक उठी। वह बोला, ‘तुम्हारी इस बात में ही इसका इलाज निकल आया है।’
‘वह कैसे?’ चकमक ने पूछा।

‘देखो, जैसे खूब खाने से पेट फूला, वैसे ही न खाने से पेट पिचकेगा, फिर अंगूठी से तुम बाहर आ जाओगे।’
इलाज सुनते ही पेटू चकमक भूखे रहने की बात सोचकर ही रोने लगा। पर मरता क्या न करता! वह किसी तरह एक कोने में जाकर पड़ गया। दो दिन तक चकमक ने कुछ नहीं खाया। उसे दिखा-दिखाकर बाकी चूहे दावत का बचा खाना उड़ाते रहे। बेचारा चकमक मन मारकर उनको देखता रहता। तीसरे दिन जब चूहों ने खाना शुरू किया तो चकमक चिल्लाया, ‘मैं और भूखा नहीं रह सकता। मैं भी खाऊंगा।’

कहकर उसने दौड़ने  की कोशिश  की तो वह पेट पिचक जाने के कारण अंगूठी से निकल गया। यह देख, सारे चूहे खुशी से नाचने लगे। चकमक ने झट से अपनी भूख मिटाई। पर इस बार वह आराम से खाना खा रहा था। जबरदस्ती भूख से ज्यादा खाने का परिणाम वह देख चुका था। उसी रात चकमक अपनी मां के साथ अंगूठी को मुंह में दबाकर मालकिन की बेटी रीना के कमरे के दरवाजे तक छोड़ आया।

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